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मातृ पक्षी के लिए सूरज घर लौटता है: स्पीति का प्रतिष्ठित तिबत्तीयन कृषि कैलेंडर

दुनिया के सबसे दुर्गम और जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों में स्तिथ स्पीति घाटी की उल्लेखनीय प्राचीन कृषि विरासत ने ही हज़ारो सालो से वहाँ बस ने वाली सभ्यताओं को ज़िंदा रखा है। इस बंजर और सुखी प्रतीत होने वाली धरती पर, खेती का संचालन और स्थिरता सुनिश्चित करने मे स्पीति घाटी के पौराणिक खेती के कैलेंडर का विशेष महत्व है। हालांकि स्पीति स्थानीय संस्कृति के कई पहलुओं को लद्दाख और ऊपरी किन्नौर जैसे तिब्बती बौद्ध क्षेत्रों से साझा करती है, जिसमें कैलेंडर भी शामिल है, पर इसके कैलेंडर के समय और महीनों के नाम अद्वितीय है।

समय और महीनों के नाम के अलावा, कैलेंडर का अभ्यास अन्य स्थानीय और स्वदेशी ज्ञान के साथ किया जाता है जैसे कि उतरायण और अन्य महत्वपूर्ण दिनों और समयों को चिह्नित करने के लिए किसान ऊंचे पहाड़ों के पत्थर स्तूप चिन्हों पर सूर्योदय और सूर्यास्त के अवलोकन को चिह्नित कर कैलेंडर का उपयोग करते हैं। किसान समय बताने के लिए स्थानीय पौधों और जानवरों के रंगों, ध्वनियों और लय का अवलोकन भी करते हैं।

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फोटो साभार: प्रसेनजीत यादव

सर्दियों के महीने

 

स्पीति के किसानों के लिए, वर्ष की शुरुआत खेत में कड़ी मेहनत के बाद आराम और उत्सव के साथ होती है। पहले महीने को लोसर या नया साल कहा जाता है और यह ग्रेगोरियन कैलेंडर के मध्य-नवंबर के आसपास होता है। किसान इस समय के आसपास स्पीति घाटी में सभी समय-संवेदनशील आवश्यक आजीविका गतिविधियों को समाप्त करने के बाद, लोसर उत्सव के लिए तैयार रहते है। अगले दो-तीन महीनों तक गाँव के सभी रास्ते बर्फ से ढके रहने की वजह से किसान अपना ध्यान परिवार के साथ इकट्ठा होने और धार्मिक अनुष्ठानों की ओर लगा देते हैं।

 

दूसरे महीने को झमा या “मातृ पक्षी” कहा जाता है। कहा जाता है कि एक बार एक दिव्य पक्षी, घरोग (कौवे की नस्ल का पक्षी जिसे रेवेन कहा जाता हे ), कई प्रयासों के बावजूद अंडों से चूजे को जन्म नहीं दे पा रहा था क्योंकि उसका शरीर अंडा देने के लिए अत्याधिक गर्म था। इस विफलता से पीड़ित रेवेन ने प्रार्थना की कि वह सर्दियों के आने पर सुनहरे अंडे से चूजों को जन्म दे सके। यही कारण है कि रेवेन सर्दियों के दूसरे महीने के दौरान पहाड़ की चट्टान पर अपना घोंसला बनाते हैं। एक स्थानीय कहावत है जो इस कहानी से जुड़ी है - "झमा झमा ज़ेरना जिरुग ए-छू-छू" जिसका मतलब है कि झमा की ठंड को लेकर शिकायत न करें क्योंकि जिरुग; आने वाले महीना, और भी ठंडा है।

रेवेन प्राचीन स्पीति और तिब्बती मान्यताओं में सुरक्षा और शगुन का पक्षी है, जैसा दुनिया भर की कई संस्कृतियो में है। सबसे ठंडे सर्दियों के महीने को जिरुग कहा जाता है, जिसका अर्थ है पक्षी का बच्चा। झमा और जिरुग सही रूप में समय पर आते हैं क्यूँकि रेवेन के अंडे-देना व अंडे को सेने का समय फ़रवरी या जिरुग के दौरान शुरू होता है। रेवेन और पक्षी के बच्चे की कहानी को विस्तृत तिब्बती ज्योतिष ज्ञान में भी काम में लाया जाता है। उदाहरण के लिए, किन्नौर में २००८-०९ का कृषि कैलेंडर। १२वें तिब्बती महीने या स्पीति के जिरुग महीने का १९वां दिन दर्शाता है कि "दिव्य पक्षी ने ३० दिन पूरे कर लिए हैं, अगर इसके बाद बर्फबारी होती है, तो दिव्य पक्षी सुनहरे अंडे देगा, और तिब्बत में भरपूर कृषि-पशुचार होगा।"

वसंत के महीने

पहले वसंत महीने को देग्या ('दे रग्या) कहा जाता है, जिसका अर्थ है सूर्य की ऊर्जा में भिगोना, क्योंकि दिन गर्म हो जाते हैं और वसंत विषुव के साथ लम्बे हो जाते हैं। जैसे ही बर्फ का आवरण पिघलना शुरू होता है और दिन उज्जवल होते हैं, नाभो और जंगली बकरी अक्सर भूखे हिम तेंदुओ की निगाहो के नीचे, दूर पहाड़ों पर सुप्त पौधे खाते हैं। इस महीने के दौरान सूर्य की ऊष्मीय ऊर्जा खेतों से बर्फ पिघलाने के लिए महत्वपूर्ण है ताकि किसान अगले महीने से खेती की छोटी अवधि का पूरा उपयोग कर सकें।

दूसरा वसंत महीना शिंगदेउ (शिंग 'देब) या "खेतों की खेती करें" है। चुने हुए शुभ दिन पर, किसान अपने खेतों में कुछ छोटे छोटे पत्थर इकट्ठा करते हैं, जिसके बीच वे जुनिपर के पत्तों को जलाकर धूप प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं। इसके बाद मुक्ति पेय को यार मक्खन से सजाकर और सफेद दुपट्टे में लपेटकर प्रसाद के तौर पर चढ़ाते है। औजारों और इसमें शामिल लोगों के माथे पर, बैल के सींगों पर और हल पर यार मक्खन लगाया जाता है। और पूरी जुताई की अवधि के दौरान, हल चलाने वाला गीत और प्रार्थनायें गाता है जो पहाड़ी बैल को जुताई की प्रक्रिया में मुड़ने, रुकने या जुतायी जारी रखने के लिए मार्गदर्शन करती हैं, और जुताई की प्रक्रिया में कीड़ों की मौत का कारण बनने के लिए क्षमा भी माँगती हैं।

ना-नगॉन सा-नगॉन, जिसका अर्थ है "नीला आसमान नीली धरती”, वसंत के अंतिम महीने में स्पीति अनेक प्रकार के रंगों से जीवित हो उठता है। यह सुंदर नाम तेजस्वी नीले आसमान के नीचे हरे भरे खेतों की सुंदरता का प्रतीक है। वसंत ऋतु से लेकर सर्दियों तक जब तक बर्फबारी नहीं हो जाती, बैल पहाड़ों पर स्वतंत्र रूप से चरते हैं, जिससे गांव की अर्थव्यवस्था, खाद, गोबर और ईंधन, जो की ऊर्जा का मुख्य स्रोत है, का उत्पादन किया जा सके। किसान बीज बोने से लेकर पहली सिंचाई तक पारंपरिक ज्ञान के अनुसार स्पितियन मिट्टी, पानी और मौसम की स्थिति में अंकुरण के लिए आदर्श स्थिति सुनिश्चित करने के लिए चालीस दिन गिनते है और प्रतीक्षा करते है। फिर कृषि महिला विशेषज्ञ हरी-भरी फसलों के पोषण के लिए नाभो के सींग से बने एक सिंचाई उपकरण की सहायता से पहली सिंचाई करती हैं जिसे “मातृ सिंचाई” या युरमा कहते है।

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फोटो साभार: डॉ तशी छेरिंग

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फोटो साभार: दीपशिखा शर्मा

गर्मी के महीने

छोटी, सिंचित फसलें गर्मियों में बड़ी होने लगती हैं, यही कारण है कि गर्मी के पहले महीने को मेंतोग या "फूल" कहा जाता है। मेंतोग वास्तव में फूलों का महीना है क्योंकि इस दौरान पूरी घाटी में हर तरह के फूल खिलते हैं। दूसरी सिंचाई जिसे रक्ती या "धूप में जले हुए पौधों को पानी देना" कहा जाता है, फूल खिलनेके महीने में होती है। इसे रक्ती कहा जाता है क्योंकि किसान पहली और दूसरी सिंचाई के बीच दस दिनों का समय देते हैं, जिससे छोटी फसलें सूख जाती हैं और धूप में जल जाती हैं। यह कार्य छोटी फसलों को दुर्लभ पानी की पौष्टिक शक्तियों का मूल्य सिखाता है, जिससे वे भविष्य में अधिक पानी अवशोषित कर सके। यह खेती के कठोर रीति-रिवाज पंचांग का पालन करते हैं, जैसे कि गर्मी के संक्रांति (२१ जून) से कटाई के मौसम तक फसलों और पौधों पर अधिकतम बायोमास वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए दरांती का उपयोग या पौधों को काटने पर प्रतिबंध लगाना।

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फोटो साभार: प्रसेनजीत यादव

मध्य गर्मियों तक, किसानों की मेहनत फल लाती है क्योंकि जौ के ऊपर दाने आने लग जाते हैं। यही कारण है कि मध्य गर्मियों के महीने को द्रेबू या "किसी के श्रम का फल" कहा जाता है। किसान अगले महीने फसल के पकने का इंतजार करते हैं। जैसे ही जौ पर के कड़े बालों के गुच्छे उगते हैं, किसान किरछुई नामक एक विशेष तकनीक से खेतों की सिंचाई करते हैं। अब सिंचाई की नहरों और नालियों को इस तरह से सावधानीपूर्वक तैयार किया जाता है कि खेत के मुख्य जलमार्ग से छोड़े जाने के बाद पानी खेत के सभी हिस्सों में अपने आप बह जाए। इस सुविधाजनक विधि का दूसरा नाम मिनचू भी है, जो कच्चे बीजों को पकने में मदद करता है।

गर्मियों का आख़िरी महीना सेल्डा या "फसल का महीना" कहा जाता है। जौ जैसी पारंपरिक फसलों की कटाई प्राचीन रीति-रिवाजों के अनुसार की जाती है। फसलों को काटने के बाद, जौ के फलियों को सीधी धूप में सूखने से बचाने के लिए साफ-सुथरे खेत के आयताकार भाग में पुली के ढेर बनाकर रखा जाता है। जब फसल के ढेर को खलिहान में लाया जाता है तब ही फलियों को सुखाने के लिए धूप में रखा जाता है। झोझो ड्रगुमा की एक पौराणिक कहानी में इस प्रथा का पालन करने का महत्व बताया गया है।

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फोटो साभार: प्रसेनजीत यादव

झोझो ड्रगुमा एक धनी महिला थीं, जिन्होंने अपने जौ के ढेरों को सही तरीके से सुखाने की मेहनत नहीं की। इसके कारण, फलियाँ और दाने सूख गए, और जब ढेरों को खेत से खलिहान में ले जाया गया, तो वे रस्ते में ही गिर गए। इसलिए, स्पीती के किसानो को उनके रात के आसमान पर आकाशगंगा बहुत ही शानदार ढंग से दिखती है। आकाशगंगा के तारे झोझो ड्रगुमा के वो जौ के दाने है जो रास्ते में गिर गए थे।

पतझड़ के महीने

पतझड़ के पहले महीने को खुयू नाम दिया गया है। खुयू स्पीति शब्द है जिसका मतलब है भूसे से अनाज को अलग करना। इस प्रक्रिया में पहाड़ी बैल और अन्य जानवरों को एक मजबूत केंद्रीय पोल से बाँधा जाता है और इन जानवरों की मदद से कटी और सुखाई गयी फसलों को रौंदा जाता है। जब जानवर भूसे और अनाज को रौंदते हुए गोल-गोल घूमते हैं, तब किसान भूसे को मिलाने, धकेलने या फैलाने के लिए लकड़ी के नोकदार डंडे (ज़र) का उपयोग करते हैं ताकि अनाज ठीक से अलग हो जाए। पूरी प्रक्रिया खुयू गीतों से संपन्न होती है जिनकी गूँज दूर दूर के गाँवों में भी सुनाई देती है।

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फोटो साभार: स्टैनज़िन दोरजे (गया)

दूसरे पतझड़ के महीने को न्यिरुग कहा जाता है। "न्यी" न्यिमा या सूर्य का छोटा नाम है। “रुग” मतलब इकट्ठा करना, विशेष रूप से सूर्यास्त से पहले जानवरों को घर वापस इकट्ठा करना। जैसे, न्यिरुग वह महीना है जब सूर्यास्त जल्दी होता है और दिन छोटे हो जाते हैं तब किसान अपने घोड़ों और पहाड़ी बैलों को पहाड़ों से आने वाली, लंबी और ठंडी सर्दियों की तैयारी में वापस इकट्ठा करते हैं। सख्त रीति-रिवाजों के अनुसार किसान यह भी सुनिश्चित करते हैं कि उनके घरों में जौ का आटे, गोबर और चारे का पर्याप्त भंडार हो।

अंतिम महीने को न्यिख्यिम कहा जाता है, जो तिब्बती ज्योतिष में सूर्य के बारह राशियों के घरों को दर्शाता है। "न्यि" का अर्थ है सूर्य और "खिम" का अर्थ है मकान या घर। स्पीति के किसानों के लिए, न्यिख्यिम वह समय है जब सूर्य रेवन/मदर बर्ड की प्रार्थना को पूरा करने के लिए घर लौटता है। स्थानीय कहावतों में इसे "निमा गारलोग, झमा यिन" कहा गया है। जब सूर्य की ऊर्जा कम हो जाती है, तो झमा महीने के दौरान मातृ पक्षी (मदर बर्ड) के आने ओर चूज़ों को पालने के लिए पर्याप्त ठंड हो जाती है। जैसे कि, साल के अंत में सूर्य की वार्षिक वापसी के साथ मातृ पक्षी की कहानी एक पूर्ण चक्र में आती है, जिस समय गहरी ठंड की पूर्वानुमान में पहाड़ी बैल के सींगों में भी दरारें पड़ जाती हैं।

संक्षेप में, स्पीति के किसान एक ऐसे कैलेंडर को मानते हैं जो स्थानीय अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी को अद्भुत कहानियों और प्राचीन ज्ञान के साथ एकीकृत करता है जो शायद आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है।

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फोटो साभार: प्रसेनजीत यादव

लेखक के बारे में

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डॉ तशी छेरिंग

डॉ. ताशी छेरिंग माउंट रॉयल विश्वविद्यालय कैलगरी, कनाडा में व्याख्याता हैं। वह स्पीति घाटी के लोगों, विशेषकर बुजुर्गों और किसानों की दयालुता और उनकी कहानियों को साझा करने के लिए उनके आभारी हैं। उन्हें उम्मीद है कि स्पीति के लोगों की युवा पीढ़ी अपनी समृद्ध संस्कृति, विशेष रूप से अपनी भाषा और कृषि विरासत को संजोएगी और सम्भाले रखेगी। 

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