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किब्बर के जल प्रबंधक 

सामने दूरी पर, पहाड़ की चोटियों पर सुबह-सुबह धूप की किरणें, जैसे छायाओं का पीछा करके उन्हें भगा रही थीं। मैं धूप वाले सुनहरे हिस्सों को देख कर ये सोच रही थी कि आखिर कब तक मैं इन किरणों की गरमाई का अनुभव कर पाऊंगी। लोबज़ांग ने मुझे देखा और हंसते हुए बोली, "ठंड लग रही है? मेरी मदद करो, इससे शरीर में गर्मी आएगी!" 

लोबज़ांग अपने खेत में क्यारी बना रही थी। खेतों में बनी, मिट्टी की इस छोटी बाड़ से पानी आगे की तरफ बहता है। इन क्यारियों को जमीन के प्राकृतिक ढाल को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। पास में थिन्ले दो याकों की मदद से अपने खेत जोत रहे थे। मैं स्पीति घाटी के किब्बर गांव में थी और खेती का मौसम अभी शुरू ही हुआ था। गांव की बैठक में, कुछ ही दिन पहले खेत जोतने के दिन का फैसला हुआ था। 

"तुमने ये काम करना कैसे सीखा?" मैंने लोबज़ांग से ये पूछा। वह जिस महारत और रफ्तार से क्यारी बना रही थी, उसने मुझे आकर्षित किया। 

"मैं तो ये काम कई बरसों से कर रही हूं। मैं जब छोटी थी तो अपनी माँ की मदद करती थी, और मैंने ये काम उन्हीं से सीखा। इस साल क्योंकि काफी बर्फ गिरी है, तो पानी आसानी से उपलब्ध रहेगा।" 

उसने मुझे बताया कि किब्बर में सिंचाई प्रणाली महिलाओं के अधिकार क्षेत्र में आती है। बर्फ का पिघला हुआ पानी कानमो से आता है, ये स्पीति की एक पवित्र चोटी है। खुल का इस्तेमाल करके, चोटी से आने वाले इस पानी को किब्बर के खेतों की ओर मोड़ दिया जाता है। सिंचाई की इस प्रणाली को शुरू में जौ और काले चने के लिए शुरू किया गया था, लेकिन अब हरी मटर की सिंचाई के लिए इसमें परिवर्तन किया गया है। लोबज़ांग ने मुझे बताया कि हरी मटर के लिए सिंचाई प्रणाली में जो बदलाव हुए, उनका श्रेय महिलाओं को जाता है। उन्होंने अपनी गलतियों से सीखा, लेकिन अब वे बखूबी जान चुकी हैं कि भरपूर 

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चित्रित दीपशिखा द्वारा 

उपज के लिए पानी कितना और कब चाहिए। 

उसने मुझे बताया, "अगर आप समय से पहले, जरूरत से ज्यादा पानी देंगे तो पौधों की प्यास बढ़ती ही जाएगी। इसलिए पानी सही समय पर, और सही मात्रा में दिया जाना चाहिए।" 

फसलों की अलग-अलग चक्रों में सिंचाई की जाती है और हर चक्र में एक निश्चित क्रम का पालन किया जाता है। पहली सिंचाई को यूरमा कहते हैं। ये जुताई के 40 दिन बाद होती है। यूरमा से ठीक पहले, महिलाएं खेत से खर-पतवार हटाती हैं और उनमें सूखा हुआ यालो (एकोनोगोनम एसपी) डालती हैं। इससे मिट्टी का बहना रूकता है, और उसमें पानी देर तक ठहरता है। यूरमा के पहले दिन की सिंचाई आमची और देवता के खेतों के लिए आरक्षित होती है। पहले दिन सभी घरों की महिलाएं सिंचाई में हिस्सा लेती हैं, दूसरा दिन उन परिवारों के लिए आरक्षित रखा जाता है, जिनमें पिछले वर्ष कोई या तो गंभीर रूप से बीमार रहा है, या किसी की मृत्यु हुई है, या उनमें गर्भवती महिलाएं हैं, जो खेतों में काम नहीं कर सकती। टिपिंग लैंगजेट कहलाने वाले तीसरे दिन को उन परिवारों के लिए आरक्षित रखा जाता है, जिन्होंने जल मार्गों की देखरेख में हिस्सेदारी की होती है। तीसरे दिन के बाद बाकी बचे खेतों की सिंचाई की जाती है। 

सिंचाई के पहले तीन चक्रों के दौरान इस क्रम का पालन किया जाता है, जिसके बाद सभी खेतों को तयशुदा बारी के अनुसार सिंचाई हासिल होती है। दूसरी और तीसरी सिंचाई के समय का निर्धारण महिलाएं करती हैं। महिलाएं ही रोजाना बांटे जाने वाले पानी का काम भी संभालती है। हर साल दो महिलाओं को खुल मैनेजर के तौर पर चुना जाता है। ये खुल का प्रबंधन संभालती हैं, ये सुनिश्चित करती हैं कि सभी खेतों को उनके भाग का पानी मिले, और पानी के वितरण के मामले में जो छोटे-मोटे मनमुटाव हो सकते हैं, उनका फैसला भी यही करती हैं। सिंचाई को महिलाओं द्वारा चलाए जाने की यही प्रणाली नेपाल और दक्षिण पूर्वी एशिया के कुछ दूसरे हिस्सों में भी नजर आती है। लेकिन, पूरी दुनिया में ऐसा कम ही है कि प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन महिलाएं करती हों। ज्यादातर प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन पुरूष करते हैं, खासकर वे संसाधन जो आपस में बांटे जाते हों। ये बात किब्बर और स्पीति के कुछ दूसरे हिस्सों की सिंचाई प्रणाली को विशेष बनाती है। 

किब्बर में सिंचाई प्रणाली सदियों से मौजूद रही है। लोबज़ांग ने मुझे बताया कि जहां तक उन्हें या उनकी दादी माँ को याद है, ये प्रणाली बिन बदली ही रही है। सिंचाई से जुड़ा ज्ञान माँ से बेटी तक, पहुंचता है, जब से छोटी लड़कियाँ खेतों में उनकी मदद करना शुरू करती हैं। 

सूर्य की किरणें आखिरकार उस जगह तक पहुंच गईं, जहाँ पर हम थे, और उन्होंने हमारे शरीर को गर्माना शुरू कर दिया। इससे क्यारी बनाने में लोबज़ांग की मदद करने का मेरा जज्बा और भी बढ़ गया। मैंने कहा, "मुझे दिखाओ, ये काम कैसे होता है। मैं उस महारत को सीखने के लिए उत्सुक हूं, जो पीढ़ियों से एक से दूसरी महिला तक पहुंचती रही है।" क्या आपके गांव में भी सिंचाई प्रणालियां वैसी ही हैं जैसी किब्बर में? हमें लिखकर उनके बारे में बताइयेगा जरूर। 

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चित्रित तेनज़िन मेटोक द्वारा

लेखक के बारे में

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डॉ. रंजिनी मुरली  

डाॅक्टर रंजिनी मुरली स्नो लैपर्ड ट्रस्ट में कंजर्वेशन साइंटिस्ट हैं। वे भारत, किरगिस्तान और मंगोलिया जैसे देशों में हिम तेंदुए के संरक्षण और शोध से जुड़े प्रयासों में अपना योगदान देती रहती हैं। वे प्रशासन से जुड़े स्थानीय संस्थानों में विशेष रूचि रखती हैं।  

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