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प्राचीन सोवा - रिग्पा चिकित्सा पद्धति

पीयूष शेखसरिया द्वारा चित्रण

सोवा - रिग्पा, जिसे आमची चिकित्सा पद्धति भी कहते हैं, ऊँचे हिमालयी क्षेत्र में प्रचलित है। इसे तिब्बती औषधि प्रणाली के रूप में भी जाना जाता है और यह दुनिया की सबसे पुरानी मौजूदा ज्ञान प्रणालियों में से एक है, जिसका संबंध पारिस्थितिकीय यानि इकोलॉजी के ज्ञान, विशेषकर वनस्पति की समझ से है। स्पीति के हंसा गांव के 71 वर्षीय आमची शेरिंग ताशि के साथ 1 घंटे की लंबी बातचीत में सोवा - रिग्पा की परम्पराओं और परिपाटी की बात होती है। यहां उस इंटरव्यू का कुछ भाग रख रहे हैं :

क्या आप सोवा - रिग्पा चिकित्सा परंपरा की उत्पत्ति के बारे में बता सकते हैं? 

 

आम धारणा के विपरीत सोवा - रिग्पा,  एक प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणाली है, ना कि तिब्बती। ऐसा माना जाता है कि जब बुद्ध ने वर्तमान बिहार के वैशाली में दुख निदान का अपना उपदेश दिया था तब वहां कई ज्ञानी लोग उपस्थित थे। दूर-दूर से आये अध्यात्मिक और दिव्य विद्वानों सहित कई सारे विद्वान उस उपदेश को सुनने के लिए उस समय वहाँ आये थे। बुद्ध ने अपना उपदेश पाली भाषा में दिया था परंतु उपस्थित सभी लोगों ने उनका संदेश अपनी-अपनी भाषाओं में सुना। और चूँकि सभी ने इसे अलग-अलग तरीके से सुना, यह सबके पास अपनी-अपनी तरह से दर्ज हुआ और भिन्न-भिन्न तरीके से प्रसारित हुआ -  भारतीय उपमहाद्वीप में आयुर्वेद के रूप में,  हिमालय और तिब्बत में सोवा - रिग्पा के रूप में। इस तरह यह ज्ञान विभिन्न संस्कृतियों में फैल गया।  इसका संबंधित अनुवाद नालंदा में संस्कृत में किया गया था. इस ज्ञान प्रणाली को आयुर्वेद की प्रधानता के कारण लुप्त होने का खतरा था, लेकिन तिब्बती लोगों ने इसे संरक्षित किया। तो हालांकि सोवा - रिग्पा की उत्पत्ति भारत में हुई थी, इसे तिब्बत में संरक्षित और पोषित किया गया. लोत्सवा रिंचेन ज़ांग्पो - बौद्ध धर्म के महान अनुवादक - ने अपने छठवे जन्म में इस काम का स्थानीय भोति लिपि में अनुवाद किया।

इस चिकित्सा पद्धति का आपके परिवार में कितने समय से अनुसरण हो रहा है?

 

स्पीति के हर गाँव - लोसार से लारी तक - में एक न एक परिवार इस चिकित्सा पद्धति का अभ्यास करता है। गाँव के लोग औषधीय पौधों के संग्रह और औषधियों को तैयार करने में मदद करते हैं। ऐतिहासिक परंपरा में हर गाँव में एक ना एक आमची रहता ही था क्योंकि गाँवों के बीच संपर्क मुश्किल था और सभी गाँवों में यह एक महत्वपूर्ण जरूरत की तरह था। आमची कोई भी शुल्क नहीं लेते थे; जिस किसी को स्वास्थ्य सहायता की जरूरत होती, यह एक सेवा के रूप में दी जाती थी।

मेरे परिवार में, मेरे पिता एक जानकार व्यक्ति थे। उनको सही-सही पता होता था कि किताब के किस पन्ने पर कौन सी चिकित्सा लिखी गई है (अपने सामने रखी एक  पुरानी चिकित्सा की किताब की ओर इशारा करते हुए)। मैं कभी अपने दादा से नहीं मिला, परंतु यकीन से कह सकता हूं कि यह ज्ञान उन्होंने मेरे पिता को दिया होगा। हालांकि मैं यह नहीं जानता की कैसे और कब से मेरे पूर्वज इस चिकित्सा पद्धति से इलाज करते रहे हैं परंतु मेरे पास इस चिकित्सा पद्धति पर कई पुराने उनके लिखे हुए नोट्स रखे हैं। मेरे दादा के पास, 1930 में, तब के पंजाब के गवर्नर का लिखा हुआ पत्र भी आया था, जो मैंने आज तक संभाल कर रखा है। यह तय है कि मेरा परिवार इस चिकित्सा पद्धति का अभ्यास कम से कम कई सौ वर्षों से कर रहा है। 

अमची द्वारा औषधीय प्रयोजन के लिए पौधे के हिस्सों को एकत्रित करना; फोटो मयंक कोहली द्वारा

आपको आमची की पदवी कैसे मिली?

 

जब मैं छठवी कक्षा में पढ़ता था तब से मेरे पिताजी ने मुझे सिखाना शुरू कर दिया था।  मुझे स्कूल जाना होता था,  घर के कई सारे काम करने होते थे और इस पर भी ध्यान देना होता था। मैं घर की अकेली पुरुष संतान था और मेरी बहनों की तब तक शादी हो चुकी थी।  परंपराओं के विषय में और इस किताब को पढ़ने में मेरी रुचि बहुत कम थी। पर मेरे पिता ने हार नहीं मानी। उन्होंने मुझे धीरज का पाठ दिया। शायद जो भी थोड़ा बहुत मैं सीख पाया, उसके पीछे यही काम आया। यदि मैंने शुरू से सीखने में रुचि ली होती तो शायद मैं बेहतर आमची बनता। 

पद्धति के बारे में कोई भी 6 साल में सब कुछ सीख सकता है। परंतु मेरे पिता ने मुझे रोजनियम से सिखाया और इन ग्रंथों को रोज पढ़ने की आदत मेरे अंदर डाली, फिर चाहे सिर्फ 5 मिनट का ही समय कभी निकाल सकूं। यह ग्रंथ जो मेरे पास हैं, तकरीबन 600 साल पुराने हैं। इनको रोज पढ़ने से बहुत मदद मिलती है।

बीमारी को पहचानने और कौन सी दवा उपयुक्त है, इसकी पूरी प्रक्रिया क्या है?

 

चार  मौलिक पुस्तके हैं जो इस चिकित्सा पद्धति का आधार हैं, जो किसी भी आमची को अच्छी तरह, पूरी कंठस्थ, यानि याद, होनी चाहिए। इन मूलभूत सिद्धांतों को विस्तार से समझाने वाली यह दूसरी चार किताबें हैं। अंततः यह ग्रंथ (अपने सामने रखी पुरानी चिकित्सा लिपियों की ओर इशारा करते हुए) हैं जो कि एक संकलन की तरह हैं।  यह हर बीमारी के लक्षण, उसके उपचार और दवा की सामग्री का विवरण बताते हैं।  हम इस पुस्तिका में दिए गए  स्पष्टीकरण के साथ प्रत्येक रोगी के लक्षणों का मिलान करते हैं और इलाज करने के लिए इसमें दिए निर्देश का पालन करते हैं। 

 

जब कोई मरीज मेरे पास आता है तो मैं सबसे पहले उसकी नब्ज देखता हूं और कभी-कभी पेशाब भी। फिर मैं लक्षणों के विवरण को हैंड बुक में दिए गए विवरण से मिलाता हूं, हैंडबुक में सभी स्थानीय पौधों और उनके औषधीय मूल्यों का विवरण है। किसी विशेष बीमारी के लिए इनकी मात्रा का जरूरी अनुपात भी इसमें दिया गया है। सभी दवाएं मैं खुद बनाता हूं और किसी को इलाज के लिए देने के पहले अपने ऊपर उसका प्रयोग करके देख लेता हूं।  

 

किसी भी बीमारी के दो कारण हैं :  पहला पिछले जन्म में बुरे कर्मों का संचय , और दूसरा हमारे सामान्य परिवेश में हम जो उपभोग (भोजन, पानी और हवा इत्यादि) कर रहे हैं उसके असंतुलन से। एक आमची दूसरे कारण से होने वाली बीमारी का इलाज कर सकता है ; पहली का इलाज दवा से संभव नहीं है।  जबकि आधुनिक चिकित्सा प्रणाली बीमारी के लक्षण को महत्वपूर्ण मानती है, सोवा - रिग्पा बीमारी की जड़ को महत्वपूर्ण मानता है।

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स्पीति के हंसा गांव से अमची छेरिंग ताशी; फोटो तंजिन थिनले द्वारा

कब और कैसे वनस्पतियों का संग्रहण किया जाता है?

 

इनको संग्रहित करने का कोई नियत समय नहीं होता है। हम उपचार के लिए पौधे के विभिन्न हिस्सों का उपयोग करते हैं और इसलिए संग्रह हर मौसम में होता है। हम कुछ पौधों के फूल का इस्तेमाल करते हैं, वहीँ कुछ के बीज और कुछ की जड़ें। आमतौर पर किसी पौधे की जड़ें शरद ऋतु से पहले मिट्टी में गहराई तक बढ़ती है और वही सही समय है जब हम जड़ें  इकट्ठे करते हैं,  किसी और मौसम में हम  इनका संग्रहण नहीं करेंगे।  फूल बसंत में, जब उनके खिलने का मौसम हो तब एकत्र किए जाते। पौधों का कौन सा हिस्सा कब और कैसे इकट्ठा करना है, इसके स्पष्ट नियम हैं। 

 

एक अलग किताब में उन स्थानों का वर्णन किया गया है जहां पौधे पाए जा सकते हैं।  उदाहरण के लिए, एकोनिटम (भुआन कार्पो) ज़्यादातर उत्तर की ओर ढलान पर पाए जाते हैं और यही वह जगह है जहां हम उनकी तलाश करते हैं। डेल्फिनियम (लाडर मेनटोक) एक और अमूल्य पौधा है जो आमतौर पर हमारे मैदानों में उगता है। रोडिओला (शोलो)  भी उत्तर की ओर की ढलान में पाया जाता है -  स्पीति में इसकी तीन किस्में पायी जाती है : एक जिसमें सफेद फूल होते हैं, दूसरा जिसमें लाल

फूल होते हैं, और तीसरा जो ऊंचा बढ़ता है। इन विवरणों से इनको एकत्र करने में मदद मिलती है।

 

हैंडबुक में इन पौधों की औषधीय गुणों का विवरण भी दिया गया है। उदाहरण के लिए रोडिओला  फेफड़ों के इंफेक्शन को ठीक करता है जबकि एकोनिटम कई बीमारियां ठीक करता है :  फूल आंखों की रोशनी बढ़ाते हैं,  इसकी जड़ें हमारी हड्डियों के लिए अच्छी हैं, टहनियां हमारे हाथों और पांव के लिए अच्छी हैं जबकि तना हमारी त्वचा के लिए अच्छा है। मेकोनोप्सिस (लंडरे मेनटोक), सौसुरिआ (कस्तूरी कमल) और ट्रिलियम (नाग छतरी) को मिलाकर एक बहुत असरदायक दर्द दूर करने की औषधि बनती है, डिक्लोफेनाक सोडियम से बेहतर जिसका बहुत इस्तेमाल होता है। कई स्थानीय पौधों की प्रजातियों के चिकित्सीय गुणों की हमें जानकारी है और हम उसका प्रयोग बहुत सोच-समझकर करते हैं।

क्या जलवायु पैटर्न में बदलाव से औषधीय पौधों की उपलब्धता प्रभावित हो रही है? 

 

एक समय था जब व्यवसायिक उपयोग के लिए जंगली पौधों का संग्रह आम बात थी। हमने तब स्थानीय प्रशासन के साथ गैर जिम्मेदाराना संग्रह को सीमित करने के लिए बात की। उन्होंने तुरंत कार्यवाही की और हमें खुशी है कि स्थिति को बहुत अच्छे से संभाल लिया गया। हमारा मानना है कि स्पीति में स्थानीय जरूरतों को पूरा करने के लिए पौधे पर्याप्त होते हैं। स्पीति के लोग चाहे जितनी दवाई का इस्तेमाल करें, इस जमीन पर पौधे होते रहेंगे और वह कभी खत्म नहीं होंगे। हां,  यदि हम पौधों को व्यवसायिक उपयोग के लिए स्पीति के बाहर निर्यात करेंगे,  तो हम इस अमूल्य संसाधन को खत्म करने का जोखिम लेंगे। उत्पादन और उपभोग के बीच में एक बहुत बारीक संतुलन होता है, जिसे हमें बिगाड़ना नहीं चाहिए। बर्फबारी में बदलाव से पौधों की वृद्धि पर मामूली प्रभाव पड़ता है, पर इतना नहीं कि यह संतुलन बिगड़े।

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नवांग तन्खे द्वारा चित्रण

कभी-कभी मुझे आश्चर्य होता है कि ऐसे समय में जब हर कोई पैसे के पीछे भागता है, ऐसी सेवा मुफ्त में देना मूर्खतापूर्ण होगा। लेकिन फिर, मुझे यह भी याद है कि जब मैं मरूंगा, तो मैं सब कुछ पीछे छोड़ दूंगा: जमीन, परिवार, यहां तक ​​कि अपना शरीर भी। मुझे केवल मेरी ईमानदारी के लिए याद किया जाएगा।' यही चीज़ मुझे आगे बढ़ाती रहती है। हालाँकि, स्थानीय प्रशासन को अभ्यासकर्ताओं को बुनियादी वित्तीय सहायता प्रदान करने पर विचार करना चाहिए ताकि वे इस परंपरा का अभ्यास करना जारी रख सकें।

लेखक का परिचय

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डॉ. मयंक कोहली

 

यह एक संक्षिप्त अंश है और आप पूरा साक्षात्कार हमारे YouTube चैनल: @HimKatha पर देख सकते हैं। यह साक्षात्कार डॉ. मयंक कोहली द्वारा आयोजित किया गया था जो प्लांट सिस्टम का अध्ययन करते हैं और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में इंस्पायर फेलो हैं।

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