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स्पीति में पारम्परिक हस्तकरगा वस्त्र

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पहनावे और पहचान में बहुत गहरा संबंद है। पारम्परिक परिधान किसी भी क्षेत्र के भौतिक पर्यावरण, जलवायुवीय परिस्थितियाँ के बारे में बहुत कुछ जानकारी देता है। स्पीति ऊँचे एवं ठंडे क्षेत्र में होने के कारण यहाँ के लोगों में भिन्न-भिन्न तरह के परिधनो का चलन है। क्योंकि यहाँ के अधिकतर लोग मिश्रित कृषि करते हैं तथा जिन पशुधनो को यहाँ के लोग पालते हैं उनसे कई प्रकार के जांतव रेशे जैसे याक का ऊन, भेड़ों का ऊन बकरी से प्राप्त रेशा आदि ही यहाँ के लोगों के पहनावे का मुखिया साधन हैं। पुराने समय में लोग हाथों से बुने वस्त्र एवं आभूषणो का उपयोग करते थे। परंतु बाज़ार एवं व्यवसाय के साथ जुड़ने से कई प्रकार के रेशे ओर कपड़े उपलब्ध हो गए हैं और परिधानो के रूप भी समय के अनुकूल हो गए हैं। चलो में आपके साथ कुछ परिधानो की चर्चा करता हूँ-

राभी कुंगा द्वारा फोटो

2.सुलमा

सुलमा एक लम्बा एवं बड़ा पारम्परिक परिधान है जोकि यहाँ की महिलाएँ पहनती हैं। इसका गला गोल ओर  बाजूएं लम्बी होती हैं। परिधान में नीचे की ओर बहुत सारे चुन्नटें होती हैं जिस कारण इसे सुलमा कहा जाता है। हैं। पतले बूने हुए कपड़े से इसे कमर में बांधा जाता है जिसेकेरा  कहते हैं। टांगो के चारों ओर ये पूरा फेल जाता है जिससे चलने और खेतों में काम करते समय आसानी रहती है।

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1.रेगोए और घोए : 

 

घोए  एक मोटा और लम्बा पारम्परिक परिधान है जोकी पुरुष पहनते हैं। पुराने समय में लोग ऊन से बने घोए  पहनते थे। समय के साथ साथ सूत के मोटे कपड़ों से बने घोए  भी प्रचलित है जिन्हें रे (पतला कपड़ा) घोए (पहनना) रेघोए कहते हैं। घोए  पहनने का तरीक़ा मंगोलियन से मिलता झूलता है जोकि दाँए ओर से ढकता है तथा बाँए तरफ़ के कंधों से बटन द्वारा बंद किया जाता है। पुरुष इसके अंदर जोड़े के रूप में एक पतला सा क़मीज़ ओर सादा पयजामा पहनते हैं।अंत में घोए को पतले बूने हुए कपड़े से कमर में बांधा जाता है जिसे केरा कहते हैं। यहाँ घोए मुख्यतः भूरे, लाल गहरे नीले एवं काले रंग के होते हैं। बदलते समय के साथ रेशम तथा मख़मल का उपयोग भी बढ़ गया है। इसलिए घोए भी रेशम मख़मल तथा कई रंगों के मानव निर्मित रेशों से बन सकता है।

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स्पीति का पारंपरिक परिधान :सुलमा, चदर और रेगोए | फ़ोटो का श्रेय: रबि कूँगा

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3.फ्हल सुतन

सुतन  ऊन या सूत से बना पायजामा है जिसे स्पीति में पुरुष ओर औरत दोनो पहनते हैं। यह भेड़ के ऊन जिसे “निम्पू” भी कहा जाता है  से बना हुआ एक मोटा पायजामा है। निम्पू  को पीठ पट्टू या पैर पट्टू करघा से तैयार किया जाता है जिन्हें मनचाहे तरीक़े के पायजामो में सिला जाता है। निम्पू सुतन या फ्हल सुतन को प्राथमिक तौर से निम्पू (ऊन का कपड़ा) सुतन को प्राथमिक रूप में औरतें सूल्मा के अंदर ओर पुरुष घोए के अंदर पहनते हैं। पहनावे में समय के बदलाव के साथ  औरतें अब मेल खाने वाले सलवार या सूट के साथ भी पहन लेते हैं।

4.लोकपा और गेपलोक

लोकपा और गेपलोक भेड़ या बकरी के खाल से बनाया जाता है। लोकपा  पुरुषों के द्वारा सर्दियों में पहने जाने वाला और गेपलोक औरतों के द्वारा सर्दियों में पहने जाने वाला एक गर्म परिधान है। स्थानीय नाम लकपा (पलटना) पेचीदा प्रक्रिया को दर्शाता है जिसे दरजिन बनाती है। यह बेहद गर्म है और ठंडे  मौसम के लिए एकदम सही परिधान है। लकपा  एवं गेपलोक की मोटाई पीठ पर भारी भार जैसे लकड़ी या पशुओं के लिए चारा ढोते समय पीठ को कुशन करती है। कभी-कभी, नवजात शिशुओं या भेड़ के बच्चों को भी गर्मी और आराम प्रदान करने के लिए परिधान में लपेटा जाता है। 

स्पीति के पुरुष रेगोए पहने हुए। फ़ोटो का श्रेय: रबि कूँगा।

5.लिंग्चे

लिंग्चे एक पारम्परिक हथकरघा परिधान है जोकि महिलायें अपने पीठ पर ओड़ती हैं। यह एक उत्तम एवं विशेष प्रकार का शॉल हैं जो करघा पर महिलाएँ तैयार करती हैं जोकि अनेक रंग ओर पैटर्न की होती है। प्राथमिक रंग लाल सफ़ेद या काला होता है जिसपर कई ज्यामितिक प्रतिरूपों को बनाया जाता है। प्राकर्तिक चिन्ह जैसे वनस्पति ओर जीव या धार्मिक चिन्ह स्तूप और स्वस्तिक (भूनकर को बुरी शक्तियों से सुरक्षित रखने के लिए) या रत्नों के चिन्ह को भी लिंग्चे के पैटर्न के रूप में प्रयुक्त होता है। लिंग्चे को विशेष अवसरों जैसे रिंपोछे दर्शन, विवाह, उत्सवों और रिवाज़-रसम के  समय पहना जाता है। 

6.चदर 

 

चदर एक सादा ऊन का शॉल है जिसे महिलाएँ हमेशा पहनती हैं। गेपलोक (लकपा ) के अपेक्षा यह पतला और हल्का होता है।  जिससे खड्डी पर तैयार किया जाता है। यह बकरी या भेड़ के ऊन से बना होता है जोकि उदासीन रंगों जैसे बिस्कुटी, स्लेटी, हल्का सफ़ेद  तथा काला होता है। यह सबसे अधिक उपयोगी परिधान है जिसे सुलमा  के ऊपर पहना जाता है और इसका उपयोग नन्हे बच्चों को लपेटने में किया जाता है। पुराने जमाने के कहावत के अनुसार महिलायें बिना पीठ पर चदर ओढ़े बाहर नही जा सकती थी। चदर ओढ़ना आपका उस व्यक्ति के प्रति आदर आदर दर्शाता है जिससे आप मिलने जा रहे हो।

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लिंग्ज़े - पारंपरिक डिजाइनों के साथ बहुरंगी शॉल

"परिधान ओर सामग्री जिससे स्पीति का पारम्परिक वस्त्र तैयार होता है यहाँ उपलब्ध संसाधनो के अधिकतम उपयोग को दर्शाता है।"

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7.तिवि 

 

तिवि को महिलाएँ और पुरुष दोनो पहनते हैं। निम्पू (ऊन का कपड़ा) तिवि बनाने का प्राथमिक कपड़ा है जिसमें बकरी या भेड़ की एक परत होती है जिससे पारम्परिक तिवि तैयार होता है। सूत या ऊन के कपड़े को अंदर के पट्टों से मेल खाने वाला रेशम के पट्टे से गरम रखने के लिए सिला जाता है। सुनहेरे या चाँदी के रंग के ज़री या धागों के रूपों से आवश्यकता अनुसार इससे सजाया जाता है।

8.ल्हम 

 

ल्हम का मतलब जूते से है जोकि ऊँचे हिमालय क्षेत्र के लोग या घुमंतू लोग पहनते हैं। असल में ये याक के खाल से बनता है परंतु बीतते समय के साथ या कानवास, जूट तथा कपड़े का बनने लगा है। ल्हम को बहुत ही समृद्ध काशिदाकारी तथा विशेष ड्रैगन या संपो के प्रतिरूपों से सजाया जाता है। ल्हम के निर्माण में प्रयुक्त वस्तु, रंग तथा कपड़ा बनाने वाले के हुनर का परिचय देता है। पुरुष का ल्हम  घुटनो तक होता है जिससे आसानी से बर्फीले पहाड़ों को पार किया जा सकता है। पुरुष इसे घोएशेन (रेशम घोए)के साथ तथा महिलाएँ थोड़ा छोटा ल्हम सुलमा के साथ पहनते हैं। अब ल्हम का रोज़ाना उपयोग बीतते  समय के साथ बहुत कम हो गया है। अब केवल इससे त्योहारों एवं विशेष अवसरों में ही पहना जाता है।

स्पीति की दुल्हन लिंग्ज़े (बहुरंगी शॉल) गेपलोक (कंधों पर बिखरा हुआ हरा लहंगा) सुल्मा (भूरा गाउन) और तिवी (टोपी) पहने हुए।

परिधान ओर सामग्री जिससे स्पीति का पारम्परिक वस्त्र तैयार होता है यहाँ उपलब्ध संसाधनो के अधिकतम उपयोग को दर्शाता है। त्योहारों एवं विशेष अवसरों पर ये परिधान विशेष अवसरों पर  विशेष आभूषणो जैसे फ़िरोज़ा, फ़ेरक, उल्दीक, चाँदी का दोचा, दिक़रा (जड़ाउ पिन), खिन्यूर और पित्सप के साथ पहना जाता है। हमारे पारम्परिक परिधान पश्चिमी तिब्बत के साथ साथ हमारे घनिष्ट सम्बन्ध को दर्शाता है और हमारे संस्कृति का बहुत बड़ा हिस्सा है।  

लेखिका के बारे में:

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यह लेख श्रीमती डोलमा जांगमो, छेरिंग जांगमो और तंजीन अंकित से उदार चर्चा और अंतर्दृष्टि का परिणाम है। वे स्पीति (हि.प्र.) के किब्बर गांव से हैं - एक स्थान जो हिम तेंदुओं के लिए अपने संपन्न आवास के लिए लोकप्रिय है। वे किसान हैं और अपनी कठोर परिस्थितियों के लिए पहचाने जाने वाले कृषि क्षेत्रों में काम करते हैं जहां वे जौ, हरी मटर और अन्य फसलों की खेती करते हैं। वे सभी संरक्षण पहल शेन (बर्फीली तेंदुआ उद्यम) में सक्रिय भागीदार हैं जहां वे अपने गांव में पर्यावरण संरक्षण में योगदान देते हैं और हस्तशिल्प उत्पादों के उत्पादन और बिक्री को भी बढ़ावा देते हैं।

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