top of page

धार पर जीना : उच्च हिमालय की वनस्पतियां

जब भी हम हिमालय कहते हैं, तो तुरंत विशाल पहाड़ों की बर्फ ढकी चोटियां, उबड़-खाबड़ ढलानें और कठोर मौसम हमारी कल्पना में आते हैं, जहां तेज हवाएं और शुष्क मैदान हैं। यहां की एक पुरानी कहावत है कि, “यहां के मैदान इतने बंजर और इतनी ऊंचाई पर हैं कि केवल सबसे अच्छा दोस्त और सबसे बहादुर दुश्मन ही यहां आने की हिम्मत करेगा।” यह कल्पना करना कठिन है कि ऐसा चरम वातावरण किसी पौधे के जीवन को कैसे पाल सकता है। पर असल में यह पहाड़ कई अद्भुत पौधों का पोषण करते हैं जो कि बहुत ऊंचाई और कठोर मौसम में जीवित रहने में सक्षम हैं। इस परिदृश्य के लक्षण हैं : तापमान में बड़ा अंतर्, तेज हवाएं, उच्च पराबैंगनी किरणें, उगने का छोटा समयकाल और हिमालय का बंजर क्षेत्र।

Box 3 Acontholimon lycopodiodes 1.jpg

हम, इंसानों में जैसे कि एक संवहन प्रणाली उनके भीतर बनी होती है जो कि हमारी कोशिकाओं को ऑक्सीजन पहुंचाती है और अपशिष्ट बाहर फेंकती है, कई पौधों में भी उनके पोषण और पानी की पूर्ती के लिए बहुत उच्च स्तर की परिवहन प्रणाली बनी होती है। ऐसे पौधों को संवहनी पौधे कहते हैं। उच्च हिमालय में उगने वाले संवहनी पौधों में विशेष प्रकार की एक तकनीक पायी जाती है जो उसे चरम मौसम में जीवित रहने में मदद करती है।

Acontholimon lycopodiodes; फोटो थिनल्स चोंडोल द्वारा

ऐसा ही एक उच्च हिमालयी क्षेत्र, पश्चिम हिमालय में स्थित लद्दाख है और जो भारतीय उपमहाद्वीप का ताज है। अपेक्षाकृत अनछुआ और कम खोजा गया। वनस्पति अन्वेषण के लिए लद्दाख एक स्वर्ग है। कई शोधकर्ताओं ने इस क्षेत्र के पौधों की प्रजातियों की विविधता का अध्ययन और उसको दर्ज़ करने का प्रयास किया है। अब तक संवहनी पौधों की 1,250 किस्मों की पहचान की जा चुकी है। 

Box 2 Alpine grassland_edited.jpg

फोटो (ऊपर): स्टेपी हैबिटेट; फोटो (नीचे): अल्पाइन घास का मैदान; फोटो थिनल्स चोंडोल द्वारा

 

स्टेपीज़ की विशेषता गर्म और शुष्क स्थितियाँ हैं। स्टेपीज़ में उगने वाले पौधे बार-बार पड़ने वाले सूखे से बचने के लिए अनुकूलित होते हैं।

अल्पाइन आवासों की विशेषता ठंडी और नम स्थितियाँ हैं, जिनमें घास के मैदान और घास के मैदान शामिल हैं।

स्थायी हिमरेखा के ठीक नीचे सबनिवल निवास स्थान होते हैं, और उनकी विशेषता अत्यधिक ठंड और नम स्थिति होती है। ऐसे आवासों में गर्मी के महीनों के दौरान भी तापमान शून्य से नीचे तक गिर सकता है।

अर्ध-रेगिस्तान और रेगिस्तान अत्यधिक गर्म और शुष्क आवास हैं जिनमें विरल वनस्पति होती है।

नदी तट जलधाराओं और नदियों से सटे हुए खंड हैं जो गाद और रेत से बने होते हैं जो पौधों की वृद्धि द्वारा एक साथ बंधे होते हैं।

वेटलैंड्स की विशेषता बर्फबारी, पिघले ग्लेशियरों या प्राकृतिक झरनों और झीलों के परिणामस्वरूप अतिरिक्त पानी की उपस्थिति है, जो पौधों के विकास में सहायता करते हैं।

लद्दाख के उच्च हिमालयी क्षेत्र में विभिन्न आवास

मैदानी और रेगिस्तानी वनस्पति को कम बारिश और शुष्क मौसम के चलते गर्मी और सूखे की परेशानी का लगातार सामना करना पड़ता है। अध्ययन से पता चलता है कि ऐसे पौधे सूखे से बचाव और परेशानी का सामना करने के लिए तैयार होते हैं। वे जल धाराओं के पास उगते हैं जहां पर्याप्त पानी है। सूखा सहने की कुछ विशेषताएं भी इनमें विकसित हो गयी हैं जैसे कि पानी को अवशोषित करने के लिए लम्बी और गहरी जड़ों का इनमें उगना।
 

अल्पाइन और उप-क्षेत्र के पौधों को अत्यधिक ठंड के कारण तनाव का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी वृद्धि की क्षमता सीमित हो जाती है और उनकी विकास अवधि आमतौर पर 3 - 4 महीने तक सीमित हो जाती है। इन क्षेत्रों के पौधे वातावरण के अनुकूल बनते हुए आकार में बोने हो जाते हैं या गद्दी या कालीन नुमा बन जाते हैं। यह जमीन के नजदीक ही फैलते हैं जहां तापमान अपेक्षाकृत गर्म होता है।

 

हिमालय में ऊंचाई पर जो पौधे होते हैं वो बहुत विशेष होते हैं और उनमें विषम परिस्थितियों में भी रह सकने की जीवटता होती है। ज़मीन के नीचे उनकी जड़ों का घना झुण्ड होता है जो कि प्रकाश संश्लेषक उत्पाद, फोटोसिंथेसिस, से प्राप्त भोजन (कार्बोहायड्रेट) का सर्दियों के लम्बे समय के लिए संग्रहण करता है, जब कि पौधों के पास फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया के लिए अंगों (पत्तियों) का अभाव होता है। चूँकि ज़मीन के पास तापमान गर्म होता है, और तेज़ हवाओं से भी रक्षा होती है, ऊंचाई पर उगने वाले पौधे अधिकतर लम्बे नहीं होते। कुछ के शरीर पर तो रोंये भी होते हैं (ट्राईकोमस  के साथ), जो कि परा - बैंगनी किरणों से पौधों की रक्षा करते हैं और अत्यधिक सर्दी में तापमान बनाए रखने में भी मदद करते हैं।

थायलाकोस्पर्मम कैस्पिटोसम (सामान्य नाम: गोल्डन अल्पाइन सैंडवॉर्ट; स्थानीय लद्दाखी नाम: तगारकन) कुशन पौधों के रूप में उगते हैं, जो केवल सबनिवल वनस्पति क्षेत्र में उच्चतम ऊंचाई पर बढ़ते हैं। वे एक-दूसरे से बहुत मजबूती से जुड़े हुए होते हैं, सतह के बहुत करीब या कभी-कभी पत्थरों पर भी। इस प्रकार का अनुकूलन अत्यधिक ठंड की स्थिति को सहन करने के लिए है।

फोटो थिनल्स चोंडोल द्वारा

Box 4 Thylacospermum caespitosum.jpg

लद्दाख के विभिन्न आवासों से विशिष्ट पौधों के कुछ उदाहरण

पौधों का बहुत छोटा हिस्सा - टहनियां, पत्तियां और फूल - ज़मीन के ऊपर दिखता है और अपेक्षाकृत बड़ा हिस्सा - विशेषकर जड़ें और जड़ों की जटाएं - ज़मीन के नीचे बढ़ते हैं। कुछ पौधों में जिनमे पपड़ी सी होती है, टहनी और डालियों का कुछ हिस्सा जमीनी सतह के नीचे भी होता है। इनकी गहरी जड़ों का जाल इन्हे तेज़ हवाओं में पकड़ कर रखता है और उखड़ने से बचाता है, भोजन का संग्रह करता है और पानी का अवषोषण भी करता है।  

 

इन पौधों के जमीन के नीचे का भाग एक बहुत विकसित विशेष प्रकार की वास्तुकला का नमूना है। वहाँ पर यह कार्बोहाइड्रेट संग्रहित करते हैं जो उन्हें अगले बढ़ने वाले मौसम तक की लंबी सर्दियों में जीवित रहने में मदद करते हैं। जमीन के ऊपर की छोटी टहनी व् अन्य हिस्से उन्हें अत्यधिक ठंड को सहन करने में मदद करते हैं। यहां तक कि वह अपनी कोशिकाओं में पानी को अंतर कोशिकीय  प्रजातियों में स्थानांतरित करके अद्वितीय ठंड से सहनशीलता भी विकसित करते हैं। यह पौधे विषम परिस्थितियों में अपने अंगों को बदल देते हैं और अपने विभज्योतक (मेरिस्टमैटिक) उत्तक को बनाए रखते हैं, जो मिट्टी की सतह के पास पौधों के विकास के लिए जिम्मेदार होता है, ताकि परिस्थितियां फिर अनुकूल होने पर दोबारा विकास शुरू हो सके। वह भी इसलिए क्यूंकि इन उच्च ऊंचाईयों पर पौधों के लिए बढ़त का मौसम आमतौर पर केवल कुछ महीनों तक चलता है जिसमें इन पौधों को बढ़ना,  फूल आना और प्रजनन जैसी विभिन्न वार्षिक प्रक्रियाएं पूरी करनी होती हैं।

पेनस्टेमॉन वेनस्टस का रूट क्रॉस-सेक्शन (30 माइक्रोन); फोटो स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

जड़ों में वार्षिक द्वितीयक वृद्धि वलय वृद्धि का अध्ययन करने और शाकाहारी पौधों की आयु निर्धारित करने में मदद करते हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों वाले वर्षों में यह वृद्धि प्रभावित होती है जिससे संकीर्ण वलय बन जाते हैं, जबकि अनुकूल परिस्थितियों वाले बढ़ते मौसम में वलय की वृद्धि व्यापक होती है। अध्ययन के इस क्षेत्र को जड़ी-बूटी कालक्रम कहा जाता है।

Ajania fruticulosa; फोटो थिनल्स चोंडोल द्वारा

बढ़त या विकास की अवधि कम होने के कारण इनका चयापचय धीमा होता है, इसलिए अधिकाँश पौधे यहां 2 साल से अधिक जीवित रहते हैं। यह बहुत संसाधन पूर्ण और कुशल होते हैं और प्रजनन वृद्धि में कम ऊर्जा परंतु वनस्पति विकास में अधिक ऊर्जा का निवेश करते हैं। इनमें से कई पौधे फूल और बीज बनाने में ऊर्जा निवेश करने के, क्लोन विधि से प्रजनन करते हैं। 


इसके अलावा अल्पाइन पौधों की कई अन्य विशेषताएं भी हैं जो उन्हें कठिन जलवायु परिस्थितियों में जीवित रहने में मदद करती हैं। इनमें फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया की गति शामिल है, जो आमतौर पर शुरुआती मौसम में सबसे कम और मध्य बढ़त के मौसम में सबसे अधिक होती है। अल्पाइन क्षेत्र में पौधे रोंये वाले और फूलों वाले होते हैं जो छाल से भरे होते है। ये रोंये पौधों पर चमकीले स्लेटी से दिखते हैं या सफेद धब्बे से दिखते हैं (सौसरिआ नफ़्लॉडस - प्रचलित नाम : कड्वीड सॉ - वार्ट ; स्थानीय नाम : युलिआंग, जैसा की कोष्ठक क्रमांक ४ में बताया है) जो सूरज विकिरणों को प्रवर्तित करने में मदद करते हैं, जिस से सूरज की तेज़ किरणों का और थर्मल सुरक्षा का प्रभाव कम होता है।

हिमालय का इकोसिस्टम गतिशील है और वैश्विक एवं स्थानीय परिवर्तन के कारण जलवायु में उतार-चढ़ाव का प्रभाव दिखाई देता है। इन्हें गर्मियों और सर्दियों की वर्षा में बढ़ती अप्रत्याशितता के साथ साथ न्यूनतम और अधिकतम तापमान में बदलाव रूप में देखा जा रहा है। प्राकृतिक प्रणाली में परिवर्तन पौधों पर प्रभाव डालते हैं क्योंकि उनके आवास बदलते  या सिकुड़ते हैं। अल्पाइन पौधों की वृद्धि दर जलवायु के उतार-चढ़ाव से भी प्रभावित होती है जिसे रूट कॉलेज में वार्षिक माध्यमिक विकास रंगों के रूप में देखा जाता है जैसे कि लकड़ी की प्रजातियों में।

ऊंचाई पर हिमालयी पौधे पृथ्वी के कुछ सबसे चरम वातावरण में जीवन के लचीलेपन और अनुकूलन क्षमता के प्रेरणादायक साक्ष्य के रूप में खड़े हैं। यह अद्वितीय वनस्पतियां हवा में जमा देने वाले तापमान, कम हवा दाब और तेज धूप पर विजय प्राप्त करते हुए कठोर अल्पाइन परिस्थितियों में पनपने के लिए सदियों में विकसित हुई हैं।

लेखिका का परिच

Photo.jpg

थिन्लीस चन्दोल

 

थिन्लीस चन्दोल लद्दाख के नुब्रा क्षेत्र से हैं और इंस्टिट्यूट ऑफ़ बॉटनी, चेक अकादमी ऑफ़ साइंसेज और यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथ बोहेमिया, चेकिआ, में पीएचडी शोधकर्ता हैं। उनकी प्रवीणता का विषय अल्पाइन पौधों की कार्यात्मक इकोलॉजी है। उन्होंने पर्यावरण शिक्षा और संसाधन प्रबंधन में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। उन्होंने नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ डिजास्टर मैनेजमेंट (गृह मंत्रालय) और वन्य जीव विभाग, लेह में कुछ समय काम भी किया है। थिन्लीस को प्रकृति, हाईकिंग और चित्रकारी पसंद है।

bottom of page