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मेरी दादी माँ की अविस्मरणीय यादें

जब मैं छोटी थी, तो मुझे याद है मेरी इवी (दादी माँ) रोजाना सुबह प्रार्थना करने के लिए मुझे युल-सा (गांव के देवता का बौद्ध मठ) ले जाया करती थी। वे मुझसे मक्खन वाले दीपक जलाने को कहती, वे स्वयं इस दौरान वेदी की परिक्रमा करती थीं और फिर मेरे साथ प्रार्थना करने लगती थीं। मैं प्रार्थना में मांगती थी कि घर में लगातार बिजली आती रहे, ताकि मैं पूरे दिन टेलीविजन देख सकूं। मैं तब 8 साल की थी, और मुझे ये जानने की बड़ी उत्सुकता रहती थी कि आखिर इवी ने प्रार्थना में क्या मांगा होगा। तो कई बार वो मुझे टाल देती थीं फिर आखिरकार उनहोंने बताया की प्रार्थना में का ध्यान एकसमान रूप से रखती थीं।’’ उन्होंने 15 साल की उम्र से खेतों में काम करना शुरू कर दिया था, और 50 साल तक करती रहीं। वे हमारे सभी खेतों में जुताई करतीं, मवेशियों को पालती और सर्दियों के लिए गोबर और सूखे तिनके इकट्ठा करने के लिए हमारे गांव के ऊंचे पहाड़ों पर जाया करती थीं।

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पहली कटाई के बाद ग्राम देवता को अनाज का चढ़ावा: कोवांग स्पीति; फोटो साभार: चेमी ल्हामो 

जब उनकी उम्र ज्यादा हो गई, तो वे कुछ समय के लिए हमारे साथ रहीं, और वे अक्सर मुझे अपनी जवानी के दिनों की कहानियाँ सुनाया करती थीं। उन्हें मेरे पिता, मेरे चाचा के बचपन की बहुत सी बातें याद थीं, और वे जानवरों के बड़े से झुंड को अक्सर याद करतीं, जिन्हें उन्होंने बड़े प्यार से पाला था, उन्हें मरे हुए मवेशियों, और बीमार बकरियों की बातें भी भूली नहीं थी, जिनका वो ध्यान रखती थीं। वे नए जन्में बच्चों, और हमारे ड्ज़ो (हाइब्रिड याक) का बड़ा ध्यान रखती, जो कुछ साल पहले बड़े रहस्मय ढंग से गायब हो गया था। उन्हें हमारी जमीन की उर्वरता, हमारे गांव के छू-मिग (सोते के पानी) और हमारे मवेशियों पर बड़ा गर्व था, साथ ही खांगचेन (जमींदार) परिवार से जुड़ी होने के वजह से उनकी जिन्दगी खेती और ग्रामीण जीवनशैली को समर्पित थी। वे खेती वाले परिदृश्य से इतने करीब से जुड़ी हुई थीं कि यह उनकी पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया था। 

शी-गांग की ही तरह, कोवांग भी एक छोटा सा गांव है जिसमें सिर्फ 4 या 5 परिवार रहते हैं। पर इवी ने इन पहाड़ों, खेतों, नदी के किनारों और बंजर भूमि के विशाल हिस्सों को अपना ही घर मान लिया था। अक्सर सुनने को मिलता था कि वे बड़ी उग्र स्वभाव की थीं। वे अपने खेतों में कड़ी मेहनत करती थीं और उनका हुक्म चलता था। स्पीति में खेती और उससे जुड़ी गतिविधियों को सामुदायिक घटना माना जाता है, जिसमें हर कोई हिस्सा लेता है, और यह ‘भे’ नामक प्राचीन परम्परा का ही एक भाग है, इसमें लोग एक-दूसरे की मदद करते हैं, और इससे समुदाय के सदस्यों और परिवारों के बीच गहरा जुड़ाव पैदा होता है। बौद्ध उपदेशों से इस बात को और बल मिलता है, क्योंकि ये उपदेश पर्यावरण और धार्मिक आस्थाओं को आपस में बांधते हैं। इनमें समुदाय में सहयोग और एक-दूसरे की सहायता जैसे मूल्यों पर जोर दिया जाता है। लेकिन वास्तविकता इससे कहीं ज्यादा पेचीदा है और गांवों की गतिशीलता खेती से जुड़ी जिम्मेदारियों के सिलसिले में एक बड़ी भूमिका निभाती है। भूमि के स्वामित्व, संसाधनों तक पहुंच और फैसले लेने जैसी बातों पर, किसी समुदाय के अलग-अलग सदस्यों के बीच मौजूद, सत्ता की असमान अवस्था अपना असर डालती है। 

हालांकि खेतों में पुरूष और महिलाएं, दोनों ही काम करते हैं, लेकिन दोनों के कामों की प्रकृति अलग-अलग होती है। स्पीति के पुरूष मेहनत वाले काम करते हैं, जैसे कि - हल चलाना, फसल काटना और मवेशियों को चराना, जबकि महिलाएं बहुत से छोटे-मोटे काम करती हैं, (ये काम कम दिखते हैं) जैसे कि - खर-पतवार निकालना, खेतों को समान बनाना, पानी की नालियां बनाना, सिंचाई, फटकना, खाद्यान्न को पीसना और शुष्क शौचालयों से खाद निकालना। ये काम दिखने में छोटे लगते हैं, लेकिन इनका महत्व कम नहीं। इनमें समय लगता है, खेती संबंधी काम में जबर्दस्त मदद मिलती है, लेकिन इनकी अक्सर अनदेखी होती है। कृषि संबंधी श्रम और संसाधनों के आबंटन में मौजूद ये अंतर सामाजिक अंतरों को दर्शाते हैं, जहाँ खांगचेन परिवारों में पुरूषों का पलड़ा ज्यादा भारी रहता है। कहते हैं - ‘आने गी लेया ला सिरूक मेकाक’ (यानी महिलाओं के काम का कोई मूल्य नहीं है ) ये वाक्य अक्सर महिलाओं के असंतोष को दर्शाने के लिए इस्तेमाल होता है। 

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पैतृक घर जहां एवी रहती थी, फोटो साभार: चेमी ल्हामो 

मुझे याद है, मैं इवी की इस बात पर खूब हंसती थी, जो वो मेरे ‘मे-मे' (दादा) के बारे में बताती थी, कि वे बहुत सुस्त थे। "चाहे हमारा लुक-चुंग (मेमना) झुंड से अलग-थलग हो जाए, या हमारे गांव का जिंग (ग्लेशियर से आने वाले पानी का जलाशय) लीक कर रहा हो, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था। वे जब बीज बोते थे, तो यूं लगता था जैसे उन्होंने आरक पी ली हो, और उन्हें नशा हो गया हो।" लेकिन वे उनकी खूबियाँ भी बताती थीं "बेशक वे खेती के काम में इतने माहिर नहीं थे, लेकिन वे एक अच्छे सोंगपा (कारोबारी) थे और इसी कारण वे हमेशा घर से दूर रहते थे। खेतों में सारे काम मैं ही करती थी, जैसे कि याक और ड्ज़ो के साथ हल चलाना।" 

हमारे पूर्वज जिस कुदरती जगत में रहते थे, उसके हिसाब से इतनी अच्छी तरह ढल चुके थे कि स्पीति जैसे ऊंचाई वाले, मुश्किल इलाके में भी आराम से और आत्मनिर्भर तरीके से जिन्दगी बिताते थे। उनकी रोजमर्रा की जिन्दगी में उनकी बुद्धिमत्ता की जड़ें बहुत गहरी नजर आती हैं। ये लोग खेती से संबंधित शारीरिक मेहनत के काम से इतनी गहराई से जुड़े थे कि इन्हें ये पता था कि इस पर्यावरण प्रणाली के स्वास्थ्य का लाभ कैसे उठाया जाए, लेकिन फिर भी इनके अंशदानों को कोई खास महत्व नहीं दिया जाता। स्पीति जैसे दूरदराज और कम संसाधन वाले स्थानों में रहने वाले लोगों के लिए, पर्यावरण से जुड़े उनके नियमों में कायाकल्प का बहुत महत्व है। बेशक वे इसके बारे में गहराई से समझा न पाएं, लेकिन उनकी जीवनशैली में ये बात स्पष्ट नजर आती है। उनका मानना है कि मूर्त, अमूर्त, अभौतिक, भौतिक, सभी चीजों के बीच एक पर्यावरण प्रणाली के समग्र स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए एक पेचीदा संबंध मौजूद है। 

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एवी जब अपने खुले बाड़े में बकरियों के लिए सूखी घास डालती थीं तो अक्सर कहा करती थी ‘’खेती का मतलब सिर्फ प्रकृति से आहार हासिल करना ही नहीं, ये कुंचोक सम (बुद्धत्व त्रिमूर्ति के तीन गहने) की कृपा का सम्मान भी है जो हमारी मिट्टी, हमारी जलधाराओं, हमारे चरागाहों और हमारे जानवरों की सेहत और खुशी का खयाल रखते हैं।’’ जब मैं छोटी थी, तो एवी एक श्रापग्रस्त ‘स्रिनमाॅस’ (राक्षसी) की कहानी सुनाती थीं। वो कहती थीं कि हमारे गांव के विशाल और बंजर पहाड़ों के पीछे ‘स्रिनमो-युल’ (राक्षसी का इलाका) मौजूद है, जहाँ एक खतरनाक और भूखी राक्षसी रहती है। वो मुझे सावधान किया करती थीं कि अगर हमने अपने रिलुक-बलांग (मवेशी) हमारी जमीन और फसलों का ध्यान नहीं रखा, तो ये ‘स्रिनमॉस’ हमारे खेतों में आकर उन्हें और हमारे जानवरों को तबाह कर देगी। मैं उनकी कहानी पर विश्वास कर लेती थी, और गायों का दूध निकालने और मवेशियों का चारा देने जैसे कामों में उनकी मदद करती थी। अब सोचती हूं तो लगता है कि इस तरह वो मुझे अपने उस गहरे रिश्ते के बारे में बताया करती थी, जो उनका हमारी जमीन और मवेशियों के साथ था।

ग्राम मंदिर के अंदर बौद्ध धार्मिक भित्ति चित्र: कोवांग, स्पीति; फोटो कर्टसी चेमी लामो

इस इलाके के साथ उनका जो अनोखा जुड़ाव था, वह कई दशकों तक इस जमीन के साथ जुड़े रहने का नतीजा था, फिर भी ये उतना सुखद नहीं है जितना लगता है। हमारे गांव के आसपास विशाल बंजर इलाका था, और लोग कम थे, तो यहाँ रहने के साथ कई चुनौतियाँ जुड़ी थी। उन्हें अकेला रहना अच्छा नहीं लगता था, और जब उनकी शादी हुई थी, तो वे यहां से अक्सर भाग जाती थीं, और फिर परिवार के सदस्य उन्हें समझा-बुझा कर वापिस लाते थे। ग्रामीण इलाकों में अलग-थलग रहने की वजह से वो इतनी बेचैन हो गईं कि ऐसे ‘जादुई हादसों’ के लिए प्रार्थना तक करने लगी, जो कोवांग को पास ही के, ज्यादा आबादी वाले गांव, कज़ा से मिला देता। जब उनकी उम्र काफी ज्यादा हो गई, तो उन्हें रांग्रिक में मेरे चाचा के परिवार के साथ रहने में ज्यादा आनंद मिलने लगा। लोग मुझसे अक्सर कहते थे कि मेरी एवी एक कमाल की कृषक थीं, लेकिन मैं सोचती हूं कि क्या मैं उनके उस जीवन को कभी समझ पाऊंगी जो गौरव और मार्मिकता से भरा था? 

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पहाड़ों में रहना हमेशा सुखद नहीं होता है। यहां अलगाव और वियोग की भावना व्याप्त है; फोटो सौजन्य चेमी लामो

लेखक के बारे में

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चैमी ल्हामो

चैमी, स्पीति के कोवांग गांव से है जिसमें सिर्फ पांच परिवार रहते हैं। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से लिटरेचर में पोस्ट ग्रैजुएशन की है। उन्होंने दो वर्ष से भी अधिक भारतीय विकास क्षेत्र में कम्यूनिकेशन प्रोफैशनल के तौर पर काम किया है और हाल ही में एनसीएफ के हाई ऑल्टीट्यूड प्रोग्राम से जुड़ी हैं, ताकि भारत के उच्च-हिमालयी क्षेत्रों में संरक्षण पर काम कर सकें।  

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