हिमालयी कृषि
मैं हिमालय के पहाड़ों में, समुद्र तल से 14 हजार 200 फुट की ऊंचाई पर याक को देखने की उम्मीद कर रही थी, जिसके लिए मैं 2016 की गर्मियों में मैसूर से स्पीति के किब्बर गांव आई थी। गांव से चरागाह तक का रास्ता काफी मुश्किल था, लेकिन मेरे साथ गांव की दो लड़कियां - लोब्जांग और तेनजिन थीं। हमें रास्ते में कई खेत मिले जहाँ गांव वाले हरे मटर उगा रहे थे। ऐसे मुश्किल और दूरदराज क्षेत्र में किसी नकदी फसल का नजर आना अनोखी बात थी। उन्होंने बताया कि पिछले कुछ दशकों में कैसे यहाँ नकदी खेती ने जड़े जमाई थीं और नई सड़कों के बनने और पर्यटन के जरिये इन दूरदराज जगहों में कई संभावनाएं पनपने लगी थी। "हम आज भी अपने इस्तेमाल के लिए जौ उगाते हैं। हरी मटर तो सिर्फ बाहरी बाजार के लिए उगाई जाती है।" जौ एक खाद्यान्न है जो ऊपरी हिमाचल के वासियों की मुख्य खुराक है। ये विशेषकर लम्बी सर्दियों के दौरान पोषण मुहैया कराती है, जब खाने की दूसरी चीजें नियमित रूप से नहीं मिल पाती हैं। लेकिन मार्केटिंग के अवसरों की कमी के कारण, स्पीति के बाहर इसकी बहुत कम मांग है। इन लड़कियों से बात करने के बाद मेरे दिमाग में ‘थपसु’ का विचार आया।
फोटो साभार थपसु
थपसु मुनाफा कमाने वाली एक कम्पनी है, जो किसानों और दूसरे सहयोगियों के साथ कई स्तरों पर काम करती है ताकि कृषि पोषण-समृद्ध और सर्व-सुलभ हो सके। हमें आशा है कि हम एकदम जमीनी स्तर पर काम करके कृषि से जुड़े ज्ञान और उससे जुड़ी जैव विविधता को संरक्षित रख पाएंगे। हमारे काम की शुरूआत 2016 के आरंभ में हुई, जब कुछ शोधकर्ताओं और भारत सरकार की मदद से हमने दो किसानों - दीपक और पूनम के साथ इसका शुभारंभ किया। हमने लाल चावल की जट्टू किस्म को उगाने और उसकी मार्केटिंग से शुरूआत की। इसमें काफी कामयाबी मिली। तब से थपासु जनजातीय किसानों के साथ काम कर रही है, ताकि विभिन्न स्थानीय और वन्य उत्पादों को उगाया जाए, उनका मूल्य संवर्धन हो और उनकी मार्केटिंग की जाए, जिससे कृषि के प्राकृतिक और जैविक रूप को बढ़ावा मिले। ऐसे उत्पादों में शामिल हैं - जौ, सी बकथॉर्न (जंगली बैरी), काला मटर, रोडोडैनडैरॉन यानी बुरास, रोज हिप्स और टारटरी बकवीट। आज हिमाचल के तीन जिलों के (लाहौल और स्पीति, कुल्लू और मंडी) लगभग 3200 किसान हमसे जुडे हैं। इसके अलावा कर्नाटक के दो जिले (मांड्या और हसन) और लेह, लद्दाख के कुछ क्षेत्र भी हमसे जुड़ गए हैं।
थपासु ‘फार्म से स्टोर’ माॅडल पर काम करती है। ये सांस्थानिक साझेदारियों और सरकारी योजनाओं की मदद से स्थानीय किस्मों की मार्केटिंग करती है। सांस्थानिक गठजोड़ों के माध्यम से, थपासु नई टैक्नॉलॉजी विकसित करने के क्षेत्र में भी काम करती है, फिर ये तकनीकें किसानों और स्व-सहायता समूहों को स्थानांतरित की जाती हैं, ताकि वे उपज को अंतिम उत्पाद की शक्ल दे सकें।
हमारा 10 प्रतिशत मुनाफा हमारी कृषि संबंधी विभिन्न सेवाओं के जरिये वापिस समुदाय को मिलता है, ये सेवाएं हम किसानों को देते हैं, और इनमें शामिल है मिट्टी की जांच, जमीन का मापन, सरकार की तरफ से सैमी प्राॅसैसिंग सब्सिडी, कौशल प्रशिक्षण और नई टैक्नॉलॉजी को अमल में लाना। हमारी टीम में आठ लोग शामिल हैं जिनमें हिमालय क्षेत्र में इस काम को संभव बनाने के लिए विभिन्न कौशल हैं जिन्हें वे यहाँ के लोगों के साथ बांटते हैं।
पिछले 5-6 दशकों के दौरान खानपान की आदतों में बहुत फर्क आया है, लेकिन स्थानीय आहार प्रणालियों को बचाने का महत्व हमें अभी हाल ही में समझ आया है। जैव विविधता किसी पर्यावरण प्रणाली के स्वास्थ्य की मुख्य संकेतक होती है। लेकिन जंगली और स्थानीय खाद्यान्न किस्मों के विलुप्त होने का अज्ञात प्रभाव हो सकता है, जिनसे कभी-कभी सम्पूर्ण पर्यावरण प्रणालियाँ ही तबाह हो जाती हैं। देश के कुछ हिस्सों में आज भी प्राचीन उत्पाद उग रहे हैं, विशेषकर जहाँ जलवायु संबंधी स्थिति बहुत बेरहम और मुश्किल हैं। कारण ये है कि ये किस्में सूखा झेल जाती हैं, नाइट्रोजन की मात्रा को सहीकरती हैं और जलवायु संबंधी उग्र स्थितियों के बावजूद इनकी मौजूदगी बनी रहती है। जबकि इसी कार्य को करने के लिए, बाहर से यहाँ लाई गई फसलों को यहाँ निवेश वस्तुओं की जरूरत पड़ती है। लेकिन हम ये भी देख रहे हैं कि देश के सबसे दूरदराज हिस्सों में भी प्राचीन और पारंपरिक फसलों के बजाय नई किस्में इस्तेमाल की जा रही हैं। जो कुछ फिलहाल बचा-खुचा है, उसे सुरक्षित रखने का सबसे अच्छा तरीका ये है कि हम आधुनिक कृषि पद्धतियों को भूल जाएं, पारंपरिक प्रणालियों को फिर से अपनाएं और एक ऐसी चक्रीकृत प्रणाली बनाएं जिससे किसान, उपभोक्ता और पर्यावरण, सभी को लाभ हो।
फोटो साभार थपसु
फोटो साभार थपसु
थपसु क्यों?
पुराने दौर की फसलें उगाने वाले किसान अक्सर इन्हें अपने लिए ही उगाते हैं। लेकिन रोजी कमाने के लिए इन लोगों को मौजूदा दौर की फसलें उगानी पड़ती हैं, और उनमें रसायनिक उर्वरक और कीटनाशक इस्तेमाल किए जाते हैं। इससे मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित होती है और लम्बी अवधि में समुदाय के लोगों की सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है। थपसु जैविक रूप से उगाए जाने वाले उत्पादों के लिए एक बाजार सुनिश्चित करता है, और उस खाई को भरता है जो पारंपरिक एग्रो मार्केटिंग संरचना में आम नजर आती है।
थपसु की कार्यशैली क्या है?
जो भी किसान जैविक तरीके से पुरानी फसलें उगाता है, वह हमसे सम्पर्क कर सकता है, और हम उनकी उपज को बाहर के बाजार में बेचने में मदद करते हैं। उपज की गुणवत्ता और पोषण संबंधी महत्व का जायजा लेने के बाद हम इस उत्पाद की मार्केटिंग और बिक्री एक थपसु उत्पाद के तौर पर शुरू करते हैं। हम किसान से उपज की एक तय मात्रा खरीदते हैं, और यह अक्सर किसान के पास ही सुरक्षित रखी रहती है। जब हमें हमारी वैबसाइट (www.thapasu.com) पर कोई ऑर्डर आता है, तो हम किसान से कहते हैं कि वह डाक के जरिये उस पते पर पैकेज भेज दे। अगर बड़े ऑर्डर होते हैं तो फिर उन्हें हम ही संभालते हैं।
किसानों को भुगतान कैसे किया जाता है?
हम जब किसानों से उनकी उपज खरीदते हैं, तब उन्हें भुगतान होता है। यह रकम सीधे किसान के बैंक खाते में जाती है। अगर किसान का किसी बैंक में खाता नहीं होता, तो फिर भुगतान हमारे स्थानीय अधिकृत व्यक्ति द्वारा नकद रूप में किया जाता है।
किसान को कितना हिस्सा प्राप्त होता है?
कुल कमाए जाने वाले मुनाफे का 50 प्रतिशत तक किसान को या तो प्रत्यक्ष आय या हमारे द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के भाग के रूप में जाता है।
थपसु द्वारा प्रदान की जाने वाली अन्य सेवाएं?
जैविक खेती करने वाले किसान या जो किसान जैविक कृषि की ओर मुड़ना चाहते हैं, वे अपने खेतों या उपज से जुड़ी मुश्किलों पर चर्चा करने या विचार विमर्श के लिए हमसे सम्पर्क कर सकते हैं। दूसरे संस्थानों के साथ मिलकर हम किसानों के साथ नियमित रूप से वर्कशॉप भी आयोजित करते हैं, ताकि वे जैविक खेती की ओर मुड़ सकें, और अपनी क्षमताओं को और बेहतर बना सकें। हम मिट्टी का परीक्षण, लैंड मैपिंग भी करते हैं, और सरकारी सब्सिडी प्राप्त करने के सिलसिले में किसानों की मदद भी करते हैं।
किसान आप तक कैसे पहुंच सकते हैं?
आप या तो कॉल कर सकते हैं, या अपने नाम के साथ +919731408844 पर मैसेज भेज सकते हैं। आप amshu@thapasu.com पर ई-मेल भी भेज सकते हैं, या मनाली के हमारे कार्यालय में आकर मिल भी सकते हैं। पता हैः THAPASU Centre 83/7, सियाल गांव, पोस्ट ऑफिस मनाली 175131, कुल्लू जिला, हिमाचल प्रदेश, भारत।
लेखक के बारे में
अमशु सी.आर.
अम्शु सी.आर. हिमाचल प्रदेश के जनजातीय गांवों के लिए एक कम लागत के वहनीय एग्री-हाइब्रिड मॉडल के निर्माण पर पिछले 5 साल से काम करती रही हैं। उनकी पृष्ठभूमि ग्लोबल मार्केटिंग की रही है, और उन्होंने Cardiff Business School से एमबीए किया है। आप www.thapasu.com पर जाकर किसान समूहों से जुड़े उनके काम के बारे में और जानकारी हासिल कर सकते हैं।