स्पीति घाटी में शुष्क शौचालयों का पर्यावरणीय महत्व
स्पीति घाटी, हिमाचल प्रदेश के भारतीय हिमालयी भाग में मौजूद एक ग्रामीण और खुश्क पहाड़ी क्षेत्र है। ये घाटी क्योंकि एक ठंडे रेगिस्तान में है, तो गर्मियों में यहां बहुत कम बारिश होती है, और ये फसलों के पनपने के लिए पर्याप्त नहीं होती। पानी पर निर्भरता पूरी तरह ग्लेशियरों तक सिमटी रहती है, जिनका पानी ‘टॉकपोस’ कहलाने वाली जलधाराओं, और ‘यूरा’ कहलाने वाली छोटी नदियों में इकट्ठा होता है। स्थानीय समुदाय ‘टॉकपोस’ के आसपास ही बसते हैं। जहां से यूरा के जरिये पानी खेतों तक पहुंचाया जाता है। यहां के किसान खेती तो करते हैं लेकिन बहुत कम बारिश की वजह से इन्हें ग्लेशियर के पानी से अपने खेतों की सिंचाई के मुश्किल काम को अंजाम देना पड़ता है। इसके अलावा सर्दियों में स्पीति को पानी की कमी का भी सामना करना पड़ता है, और इस कारण लोग पानी की रोजमर्रा की जरूरत को पूरा करने के लिए पाइप लाइनों पर (ज्यादातर गांवों में पाइप लाइन नहीं है) हैंड पम्प पर निर्भर करते हैं। हैंड पम्प शून्य से भी नीचे वाले तापमान के कारण जम जाते हैं और उनका इस्तेमाल नहीं हो पाता। शुष्क शौचालयों की मौजूदगी की वजह से पानी की कमी उतनी नहीं खलती, क्योंकि उनमें फ्लश करने के लिए पानी की जरूरत नहीं पड़ती है, साथ ही उनसे खेतों के लिए प्राकृति खाद भी तैयार हो जाती है।
तस्वीरें एक ऑनलाइन स्रोत से ली गई हैं।
अगर स्पीति की पारंपरिक कृषि पद्धतियों पर गहराई से नजर डालें, तो पता चलता है कि स्वच्छता से जुड़ा निजी क्षेत्र से संबंधित स्थानीय ज्ञान किस प्रकार न केवल स्वच्छता की आधुनिक प्रणालियों के डिजाइन पर प्रतीकात्मक सवाल उठाता है, बल्कि विकास और आधुनिकता की उस विरोधाभास को भी सुर्खरू करता है, जिसकी शहरों में भरमार है। हम जो भी संरचनात्मक प्रगति समाज में ला रहे हैं, अगर वे उस क्षेत्र के पर्यावास से मेल नहीं खाती, जहां ये विकास हो रहा है, तो फिर उसे प्रगति कैसे कहा जा सकता है? यदि प्रकृति के संसाधनों को नुकसान पहुंचा कर ऐसा किया जा रहा है, तो क्या इसे सचमुच प्रगति कहा जा सकता है?
हम हिमालय के इन ठंडे क्षेत्रों में पीढ़ियों से शुष्क शौचालय इस्तेमाल करते आए हैं। इन्हें कम्पोस्टिंग शौचालय भी कहा जाता है, और ये आधुनिक ईको-सैन शौचालयों के प्राचीन प्रारूप हैं। इसमें दो लैवल होते हैं, ऊपर शौचालय होता है, और कम्पोस्टिंग ईकाई होती है। शौचालय का प्रयोग करने के बाद हम एक सुराख से मल पर मिट्टी (अधिकतर राख, सूखी घास या सूखा गोबर) डाल देते हैं, इससे अति सूक्ष्म जीवों द्वारा मल को सड़ाने में मदद मिलती है। मिट्टी के कारण मल ढंक जाता है, और उसमें से दुर्गन्ध भी नहीं आती है। इतना ही नहीं, इन शौचालयों के लिए पानी भी नहीं चाहिए। हर साल के अंत में हम हर घर की कम्पोस्टिंग ईकाई को हमारे पड़ोसियों, मित्रों और रिश्तेदारों की मदद से साफ करते हैं। ये एक सामुदायिक प्रयास होता है, और तब तक मल, अक्सर पूरी तरह सूख चुका होता है। जुताई के मौसम से पहले, इस प्राकृतिक खाद को खेतों में डाल दिया जाता है। इसलिए स्पीति में ‘वेस्ट’ यानी कचरा नाम की कोई चीज ही नहीं होती। स्पीति के शौचालय के डिजाइन और यहाँ के नाजुक पर्यावास के बीच के इस रिश्ते के कारण फसलें अच्छी होती हैं, और इस क्षेत्र को पानी के संकट का सामना भी नहीं करना पड़ता। इस प्रकार शुष्क शौचालयों का प्रयोग ठंडे रेगिस्तान की भौगोलिक मजबूरियों से उपजा, एक पर्यावरण अनुकूल ज्ञान है, और सर्दियों में विशेष रूप से उपयोगी साबित होता है, जब पानी जम जाता है। लेकिन यहाँ सैलानियों की संख्या बढ़ने और आधुनिकता के प्रभाव के कारण ऐसी पुरानी प्रणालियों का न केवल प्रभाव कम हो रहा है, बल्कि अगर बात शौचालयों के निर्माण की हो, तो ये स्थानीय ज्ञान के रास्ते में बाधा भी बन रहा है, और ढांचागत सुविधाओं की सामयिक मौजूदगी में भी रोड़े अटका रहा है।
तस्वीरें एक ऑनलाइन स्रोत से ली गई हैं।
शौचालय डिजाइन का प्रतीकवाद
बेशक स्वच्छता एक निजी मामला है, लेकिन ये काफी राजनीतिक भी है। इस पर वर्ग, जाति और उन भौगोलिक परिस्थितियों का गहरा असर पड़ता है, जिनमें लोग जन्म लेते हैं। जाति, वर्ग और लिंग-आधारित अंतरों वाले जिस समाज में हम रहते हैं, वहाँ हमारी रोजमर्रा की चीजें और संरचनाएं सांकेतिक मायनों से भरी है, और उनके राजनीतिक संदर्भ भी होते हैं। इन संरचनाओं से जुड़ी ज्यादातर सांकेतिकता को विकास का भारी वजन झेलना पड़ रहा है, और इसे ढोने की उम्मीद हमसे की जाती है। आधुनिकता का भार सीमान्त समुदायों को ढोना पड़ रहा है, जो सामाजिक, बौद्धिक और आर्थिक तौर पर कम साधन सम्पन्न हैं।
चित्रित मालविका द्वारा
ति के शुष्क शौचालयों में, ये बात सब जानते हैं कि मल कहाँ जा रहा है। मल सड़ कर खाद बन जाता है, और लोग इसके साथ खुद को जोड़कर देख पाते हैं। यहाँ ‘प्रयोग करने वाला’ और ‘सफाई करने वाला’ एक ही व्यक्ति है। लेकिन आधुनिकता आने से सफाई प्रणाली के डिजाइन की कामयाबी इस बात के जरिये नापी जाती है कि मल को कितनी अच्छी तरह ‘अदृश्य’ बनाया जा सकता है। किसी को इस बात की जानकारी नहीं होती कि ये मल जा कहाँ रहा है। फ्लश वाले शौचालयों में मल पानी से बहा दिया जाता है, ये सीवर में जाता है, और फ्लश इस्तेमाल करने वालों को यह फिर नजर ही नहीं आता। ये मल सीवरों में और सैप्टिक टैंकों में पड़ा रहता है, और फिर इसे वे लोग बाहर निकालते हैं जो अपनी जाति के कारण ऐसा करने पर मजबूर हों।
जानबूझ कर और अन्जाने में, आधुनिक शौचालय और सफाई प्रणालियाँ समाज में मौजूद असमानता को और बढ़ावा देती है, और एक तरह से गंदगी, जाति और सफाई संबंधी कार्य को कलंकित कर देती है। बाहर के लोगों के लिए, ये शुष्क शौचालय एक तरह से इस क्षेत्र के ‘पिछड़ेपन’ का प्रतीक हैं। इन शौचालयों को नीची नजर से देखा जाता है, और एक तरह से ये उस विकास के स्तर का संकेतक बन जाते हैं जिसे हासिल नहीं किया जा सकता है। जब मैं अपने एक दोस्त को अपने परिवार से मिलाने स्पीति ले गई, तो मेरे माता-पिता ने फोन पर जो सबसे पहली बात कही, वह थी "हमारे यहां अच्छा टाॅयलेट नहीं है। क्या तुम्हारी दोस्त हमारे पांरपरिक शौचालय से काम चला पाएगी?" कथित ‘विकास’ की अंधी दौड़ और टॉयलेट की डिजाइन प्रणालियों के वर्गीकरण की वजह से पारंपरिक शौचालय शर्मिन्दगी की वजह बन गए हैं और एक तरह से स्पीति के लोगों को उनके ‘पिछड़ेपन’ का अहसास कराते रहते हैं। इसकी वजह से स्पीति के लोगों को लगता है कि वे आधुनिकता की दौड़ के साथ कदम नहीं मिला पा रहे हैं।
पर्यटन का शौचालय के डिजाइन पर प्रभाव
हाल के बरसों में, स्पीति पर्यटन का एक प्रमुख केन्द्र बन गया है। सैलानियों को सेवाएं देने के लिए, काजा जैसे कस्बों ने कई रैस्टोरैंट और होटल बनाए हैं जिनमें फ्लश वाले आधुनिक शौचालय और बाथरूम मौजूद हैं। इस आधुनिक दौर और सैलानियों का ध्यान रखते हुए इनके मालिकों ने भूजल को निकालने के लिए बोरवैल भी बनाए हैं। कम बारिश होने के कारण भू-जल को रीचार्ज करने में बहुत समय लग सकता है। भू-जल के खत्म होने से सर्दियों में पानी की कमी बहुत गंभीर हो जाती है। सैलानियों के आने और आधुनिक ढांचागत सुविधाओं के प्रभाव की वजह से शहरों में रहने वाले स्पीति के लोग पर्यावरण के प्रति संवेदनशील अपने पारंपरिक ज्ञान से दूर हो गए हैं जिसे शौचालयों के निर्माण में इस्तेमाल किया जाता था। विकास के नाम पर, और ‘आधुनिकता’ की अंधी दौड़ में स्थानीय ज्ञान का महत्व लगातार कम होता जा रहा है।
आज के दौर में विकास के नाम पर सब कुछ हो रहा है, इस सिलसिले में संदर्भ को ध्यान में नहीं रखा जा रहा। स्पीति के शुष्क शौचालय इस बात के प्रतीक बन गए हैं कि कोई कितना ‘पिछड़ा’ हुआ या कितना ‘विकसित’ है। इस तरह शौचालय सफाई के मामले में इस बात का प्रतीक बन गए हैं कि किसी का क्या रूतबा है, और विकास के मामले में उसकी स्थिति क्या है। शुष्क शौचालय के सुराख से दिखता मल अस्वच्छ माना जाता है। स्पीति के शुष्क शौचालय, इसलिए, न केवल यह दर्शातें हैं कि विकास के आसपास के बड़े राजनीतिक प्रवचन से 'व्यक्तिगत' कैसे जुड़ा हुआ है और प्रभावित है, लेकिन यह भी कि इन्फ्रास्ट्रक्चर या सैनिटेशन डिज़ाइन सिस्टम कैसे शक्ति, शर्म और पिछड़ेपन के सामाजिक मूल्यों के भीतर फंस गया है।
चित्रित मालविका द्वारा
लेखक के बारे में
सोनम यांगज़ोम
सोनम यांगजॉम स्पीति की पिन घाटी से हैं। वे सोशोलॉजी और एंथ्रोपोलॉजी के तीसरे वर्ष की पढ़ाई कर रही हैं और अशोका यूनिवर्सिटी से एन्वायरमैंटल स्टडीज का अध्ययन भी कर रही हैं। आपको लिखना और अपनी पसंद की जगहों तथा लोगों के बारे में वीडियो बनाना अच्छा लगता है।