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काकोली की कहानी

नमस्कार, मैं हूँ काकोली, हिमालय पर्वतमाला के जंगली चरागाहों में पाया जाने वाला एक दुर्लभ और लुप्तप्राय बल्बनुमा पौधा। मेरे कई औषधीय लाभ हैं जैसे मेरे बल्ब अस्थमा जैसे दीर्घकालीन साँस लेने में तकलीफ के इलाज के लिए उपयोग होते हैं। मेरी दुर्लभता और महत्व के कारण, मुझे बाजार में बहुत अधिक कीमत में बेचा जाता है। बहुत से लोग मुझे विभिन्न औषधि बनाने के लिए जंगल से इकट्ठा करते हैं। और चूंकि मेरे बीजों को अंकुरित होने में 3 से 6 साल तक लग जाते हैं, मेरे पौधे तेज़ी से जंगलों से लुप्त होते जा रहे हैं।

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पालमपुर में मेरे कुछ दोस्त हैं जो मुझे जिंदा रखने की कोशिश कर रहे हैं। वे मुझसे कुछ बल्ब एकत्र करते हैं और उन्हें प्रयोगशाला में अंकुरित करने का प्रयास करते हैं। जब मेरा पौधा बड़ा और स्थिर हो जाता है, तब मुझे एक बार फिर से वन्य प्रदेश में लगाया जाता है। इस तरह वे मेरी आबादी को स्थिर करने में मदद कर रहे हैं। आप भी इस संदेश को फैलाकर मेरी मदद कर सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वन्य प्रदेश से कोई लुप्तप्राय पौधे अवैध रूप से एकत्र न हों।

दीपशिखा शर्मा द्वारा कलाकृति

मुख्य शब्द:

लुप्तप्राय प्रजाति

एक लुप्तप्राय प्रजाति वो होती है जिसकी निकट भविष्य में लुप्त होने की बहुत संभावना हो। यह ज्यादातर मानवीय दबावों के कारण हो रहा है।

अंकुरण

अंकुरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक जीव बीज या बीजाणु से बढ़ता है।

दीर्घकालीन बीमारी

दीर्घकालीन बीमारी एक ऐसी बीमारी है जो बार-बार लौटती है या लंबे समय तक चलती रहती है।

गतिविधि

  • अपने गांव में स्थानीय जंगली पौधों के बारे में पता करें।

  • उनका उपयोग किस लिए किया जाता है और वे क्यों महत्वपूर्ण हैं?

  • पौधे का चित्र बनाकर हमें हमारे व्हाट्सएप - 7650002777 पर भेजें

विशेषताएं:

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हिमालयी गांवों में युवा पाठकों के लिए डॉ यशवंत सिंह परमार यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री, नौनी (सोलन, हिमाचल प्रदेश) से प्रो. पंकज कुमार द्वारा क्यूरेट की गई जानकारी है। उनका शोध लुप्तप्राय हिमालयी औषधीय पौधों के संरक्षण पर केंद्रित है।

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