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पत्थर तोड़ने की रसम और स्पीति के बू-छेन

बु-छेन “महान शिष्य”

मुझे आज भी याद है जब मैंने पहली बार बु-छेन का प्रदर्शन देखा, मैं भयानक रूप से भयभीत हो गया था। मुझे प्रदर्शन का ज्यादा विवरण याद नहीं है, लेकिन उनका डरावना सफेद चेहरा आटे से सना हुआ था और गाल छेदने की रस्म मुझे स्पष्ट रूप से स्मरण है।

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फोटो साभार: पिट रिवर म्यूजियम, यू.के.

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फोटो साभार: तेनज़िन सोनम, स्पीति

बु-छेन स्पीति में धार्मिक कलाकारों का एक समूह है जो दुर्भाग्य लाने वाली बुरी आत्माओं को दूर भगाने के लिए विस्तृत अनुष्ठान और समारोह करते हैं। वे दुष्ट आत्मा को एक पत्थर में फँसाते हैं और पत्थर तोड़ने की रस्म के माध्यम से उसे नष्ट कर देते हैं। यह अनुष्ठान अनेक रोगों और दिल की बिमारियों को ठीक करने से भी जुड़ा है। इन दिनों यह कृषि आपदा, दुर्घटनाओं, बीमारी के प्रकोप, और पानी की कमी को रोकने के लिए सबसे अधिक आयोजित किया जाता है। बु-छेन लोक कथाओं के प्रदर्शन, बौद्ध संतों की कहानियों का अभिनय, ल्हामो (संगीत-नाटक) और नमथर (जीवनी) करने के लिए भी जाने जाते हैं। स्पितीयन समाज में उनकी गतिशील भूमिका को देखते हुए उन्हें, कर्मकांड करने वाले, ओपेरा कलाकार, चिकित्सक, कहानीकार और बुद्ध की शिक्षाओं के दूत के रूप में देखा जाता है।

स्पीति के बु-छेन खुद को थांगटोंग ग्यालपो का वंशज मानते हैं जो तिब्बत में प्रसिद्ध १४ वें धार्मिक अभ्यासी रह चुके हैं। थांगटोंग ग्यालपो ने तिब्बत में लोहे के पुल और स्तूप बनाए हैं और “चाक ज़ंपा” के नाम से भी जाने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि तिब्बत में एक महामारी पर अंकुश लगाने के लिए सबसे पहले पत्थर तोड़ने का समारोह थांगटोंग ग्यालपो ने किया था जब-राजधानी ल्हासा ३६० विभिन्न प्रकार की घातक बीमारियों से ग्रस्त था। इस आपदा ने नागरिकों के जीवन को बड़े पैमाने पर तबाह कर रखा था। माना जाता है कि एक असुरी शक्ति बीमारी के प्रकोप का कारण बनी हुई थी और तब थांगटोंग ग्यालपो ने सबसे पहले दुष्ट आत्मा को वश में करने के लिए पवित्र पत्थर तोड़ने का समारोह आयोजित किया। उन्होंने बीमारी फैलाने वाले दानव को एक पत्थर में कैद किया और पत्थर तोड़कर बीमारी को फैलने से रोकने में सफल रहे। उसके बाद यह प्रथा अन्य हिमालयी क्षेत्रों में व्यापक हो गई और एक महत्वपूर्ण परंपरा बन गई।

थांगटोंग ग्यालपो बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह एक अत्यधिक सम्मानित बौद्ध तांत्रिक गुरु थे जो स्मारक बनाने में कुशल थे और ओपेरा, थिएटर, लोकगीत और लेखन जैसे प्रदर्शनकारी कलाकृतियों में रुचि रखते थे। वह नैतिक नाटकों, अलंकारिक लोककथाओं, गीत, नृत्य और कथात्मक अभिनय के भौतिक अधिनियमों के माध्यम से धार्मिक शिक्षाओं का प्रसार करने वाले पहलेपुजारी भी थे। उन्हें दृढ़ता से लगता था कि करुणा, दया, शांति और नश्वरता पर मुख्य शिक्षाओं को इस तरह से पढ़ाया जाना चाहिए कि लोग इन मूल्यों को अपने वास्तविक जीवन में समझ और लागू कर सकें। इसके बाद उन्होंने तिब्बत में पहले रंगमंच समूह की स्थापना की, जो हर गांव में जाता था और नैतिकता के नाटकों और गीतों के माध्यम से धार्मिक शिक्षा देता था। पिन घाटी में स्पीति के बु-छेन इस महान गुरु के शिष्य हैं और वे खुद को उनके पुत्र मानते हैं -"बु-छेन = महान-पुत्र" जो अपने गुरु की विरासत का पालन करता है। थांगटोंग ग्यालपो को श्रद्धांजलि देना बु-छेन के प्रदर्शन का एक बड़ा हिस्सा है; वे उनकी मूर्ति को वेदी पर रखते हैं, उनसे प्रार्थना करते हैं, गीत गाते हैं और उनकी शिक्षाओं को पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से पारित करते हैं।

उपचारक के रूप में बु-छेन - समारोह की प्रासंगिकता

बु-छेन का प्रदर्शन धार्मिक उपदेशों पर आधारित है लेकिन समय के साथ, यह स्थानीय समुदायों की सामाजिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए विकसित हुआ है। यह प्रथा अब केवल धार्मिक शिक्षा देने तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह सूखे, आपदा प्लेग, कृषि हानि जैसे गंभीर सामाजिक और पारिस्थितिक संकटों को टालने और समुदायों के बीच सद्भाव लाने के लिए भी की जाती है। समुदाय बु-छेन से निवेदन करते हैं कि वे कृषि मौसम से पहले, विशेष रूप से कम बर्फबारी वाले वर्ष के दौरान, शारीरिक बीमारियों के लिए, घर बनाते समय, जीवन में कोई नया व्यापार शुरू करने से पहले या गर्भवती महिला के स्वास्थ्य और खुशी के लिए आशीर्वाद देने के लिए समारोह करें। मेमे बु-छेन हिमालयी क्षेत्र में बौद्ध समाजों में उपचारक के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उनका आशीर्वाद अति कठिन संकट के समय, साथ के साथ शांति और समृद्धि लाने के लिए मांगा जाता है। पिछले साल जब दुनिया नोवेल कोरोना वायरस की चपेट में थी और हर जगह दहशत थी, स्पीति के दूरदराज के समुदायों ने उनकी रक्षा और सुरक्षा के लिए बु-छेन की उपचार शक्तियों से मदद मांगी।

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फोटो साभार: बु-छेन गटुक सोनम, पिन

काजा, देमुल, खुरिक, की और पिन घाटी जैसे कई जगहों में पत्थर तोड़ने की रस्में निभाई गई। उन्हें लद्दाख, ज़ंसकर, लाहौल और किन्नौर के कई हिस्सों में भी आमंत्रित किया गया ताकि समुदायों को फसल की विफलता और सूखे से निपटने में मदद मिल सके। उन्हें एक बार कुल्लू/मनाली के पास एक छोटे से गाँव पत्लिकुहल में आमंत्रित किया गया था जहाँ हर साल बाढ़ भारी तबाही मचा रही थी। इसी तरह, २०१८ में जब परमपावन दलाई लामा एक नेत्र शल्य चिकित्सा के बाद गंभीर रूप से बीमार पड़ गए थे, तो पिन के मेम बु-छेन ने बेहतर स्वास्थ्य के लिए “सीम चुंग” (निजी निवास) में पत्थर तोड़ने का समारोह किया। व्यक्ति, गांव, समुदाय और मठ, उपचार उपदेश के लिए, बाधायें दूर करने के लिए और शुभ शुरआत करने के लिए बू-छेन से विचार विमर्श करते हैं।

तलवार नृत्य और पत्थर तोड़ने की रस्म

बू-छेन का चार-पाँच लोगों का अपना एक समूह होता है। इस समूह का नेतृत्व प्रमुख बू-छेन - लो-छेन द्वारा किया जाता है। एक अभिनेता लुकज़ी (गड़ेरिया) और दूसरा ओनपा (शिकारी) का अभिनय करता और उन्हें मदद करने के लिए दो अन्य सहायक अभिनेता होते हैं। प्रमुख समारोह और धार्मिक कथाएँ लो-छेन द्वारा निष्पादित की जाती हैं जबकि लुकज़ी अपने कुशल वृतांत, कहानी, और प्रदर्शनो के भंडार के माध्यम से दर्शकों को बांधे रखता है, यह सबसे दिलकश पात्र होता है। उनका प्रदर्शन सामाजिक टिप्पणियों, नक़ल, नैतिक शिक्षा, हास्य संगीत का मिश्रण होता है।

बू-छेन प्रमुख समारोह की शुरुआत प्रार्थनाओं के साथ करते हैं। लो-छेन थाँगटोंग ग्यालपो की प्रतिमा को वेदी पर रखकर, गीतिनाट्य का उच्चारण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। दूसरा दल वेदी के पास एक बड़ी शिलाखंड रखकर मंच को तैयार करता है। उस पर एक मानव आकृति को चित्रित किया जाता है जो दुष्ट आत्मा / दानव का प्रतीक होती है। इस शिलाखंड को फिर ध्वस्त किया जाता है और धूप जलाई जाती है। पूजा से पहले और बाद में एक संक्षिप्त प्रार्थना होती है जिसके बाद लो-छेन और बाकी के अभिनेता तलवार को धीमे-धीमे झूलते हुए नृत्य करते हैं।

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अपने एल्बम से मिक्किम गांव (पिन वैली) के बू-छेन छेतन्न द्वारा साझा की गई तस्वीर। यह तस्वीर १९९८ में ली गई थी।

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बुचेन गटुक सोनम द्वारा अपने एल्बम से साझा की गई तस्वीर। पिन वैली, स्पीति

अब लुकज़ी की बारी आती है जो भेड़ की चमड़ी पहने और चेहरा जौ के आटे से सना हुआ लेकर मंच पर आता है। जब लो-छेन तलवार नृत्य की तैयारी कर रहे होते हैं तब वह आकर्षक प्रदर्शन और अभिनय कर के दर्शकों को अपनी ओर खींचता है - उन्हें ज़ोर ज़ोर से हँसाता और रुलाता है। वह अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को नग्न करता है, फिर धीरे-धीरे अपने गालों को एक बड़ी सुई से छेदता है और उसे ऐसा करते देखते दर्शकों में काफ़ी भय, रोमांच और उत्साह आ जाता है। यह एक सावधानी से की जाने वाली क्रिया है और अशुभ संकेतों को दूर करने के लिए की जाती है- गालों को छेदना वाणी की शुद्धता का प्रतीक है। फिर वह अपने पेट पर तलवार की नोक़ रखने के लिए आगे बढ़ता है और धीरे-धीरे उस पर अपने शरीर का सारा भार डाल देता है। अपनी बगल में तलवार खींचकर पूरे कार्य को दोहराता है। शरीर भेदी का पूरा अनुष्ठान नश्वर मानव शरीर और एक आध्यात्मिक देवता (ल्हा), जो प्रत्येक व्यक्ति में मौजूद रहता है, को दर्शाता है। तलवार नृत्य और शरीर भेदी की पूरी विधि शरीर, मन और वाणी की पवित्रता का प्रतीक है।

आख़िरी भाग में, जब लो-छेन खुद को पत्थर तोड़ने की पवित्र रस्म के लिए तैयार करते हैं, नर्तक जिसके शरीर पर पत्थर तोड़ा जाना होता है, उसके पेट पर एक पतला कपड़ा और एक भारी पत्थर रखा जाता है। बाकी के दो अभिनेता एक दूसरा बड़ा पत्थर लाने में मदद करते हैं। लो-छेन रंगभूमि में आते हैं, भारी पत्थर को उठाकर नृतक के पेट पर रखे पत्थर पर फोड़ देते हैं। पत्थर तेज गड़गड़ाहट के साथ टूटता जाता है जो उस राक्षस के विनाश का संकेत देता है जिसकी आत्मा को इस पत्थर में फँसाया गया होता है। बू-छेन को यह उपलब्धि हासिल करने के लिए प्रचंड तांत्रिक प्रशिक्षण, योग, ध्यान और शास्त्र सीखने पड़ते हैं। उनको शरीर और मन के अनुशाशन, दशकों के कड़े प्रशिक्षण की वजह से इन घातक चोटों को सहने की क्षमता आ जाती है।

बू-छेन परम्परा में पिछले कुछ वर्षों में भारी बदलाव आया है। यह कई हिमालयी समुदायों में व्यापक प्रथा हुआ करती थी लेकिन अब इसे केवल स्पीति में ही सक्रिय रूप से मनाया जाता है और वह भी बहुत कम - इस क्षेत्र में केवल १० शेष बू-छेन परिवार हैं। “..लोग अब हमारे कौशल की कदर नहीं करते” मेमे बू-छेन छेतन्न (७६), जो स्पीति के सबसे पुराने बू-छेन में से एक हैं, विलाप करते हुए बताते हैं। "पहले लोग अपनी श्रद्धा दिखाने के लिए बू-छेन के सामने झुकते थे लेकिन लोगों के रवैये में काफी बदलाव आ गया है।" वे यह भी मानते हैं कि पर्यटकों, फोटोग्राफरों और फिल्म निर्माताओं के आने से इस प्रथा का मूल्य कम हो गया है, जहां वे आम तौर पर प्रार्थना और नमथर (जीवनी) सुनने में रुचि नहीं रखते हैं और तलवार नृत्य और पत्थर तोड़ने की प्रथा दिखाने के लिए कहते हैं जिसमे तमाशे का भाव अधिक होता है।

लेखक के बारे में

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तेनज़िन सोनम

तेनज़िन सोनम स्पीति के लारी गांव के रहने वाले हैं और वे वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय से बौद्ध अध्ययन में डॉक्टरेट की पढ़ाई कर रहे हैं।

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छिमे ल्हामो

छिमे ल्हामो कोवांग गांव की रहने वाली हैं और स्पीति की सामुदायिक कहानियों की खोज में रुचि रखती हैं जो धीरे-धीरे सामूहिक स्मृति से लुप्त होती जा रही हैं। यह लेख लेखकों के बीच स्पितीयन संस्कृति और लुप्त होती परंपरा के बीच घंटों लंबी बातचीत का परिणाम है। वे पिन वैली (स्पीति) के मेम बुचेनस के सहयोग के लिए आभारी हैं।

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