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लाहौल की ऊंची घाटियों में बुनाई की कला

उच्च हिमालयी क्षेत्र में, बुनाई एक प्राचीन हस्तकला है और लोगों के जीवन का एक अभिन्न अंग है। लाहौल में, बुनाई बर्फीले ठंडे मौसम के बीच धीमी, सरल समय में वापसी का प्रतीक है जब खेती का काम अपने सबसे निचले स्तर पर होता है। स्थानीय पौराणिक कथाओं के कहावत के अनुसार बुनाई एक ऐसा दृश्य कला है जो लोगों उनके समुदायों और सृष्टि  में उनके स्थान के बारे में कहानियों को दर्शाती है। यह रचना, परस्पर संबंध और पुनर्जीवन के मूल्य का प्रतीक है। जटिलताओं को खोलने के लिए बुनाई में गहन अनुशासन और निपुणता की आवश्यकता होती है; बुनाई में दो धागों, ताने और बाने को आर-पार निकाला जाता है। इसमें एक को ऊर्ध्वाधर तो दूसरे को क्षैतिज निकाला जाता है। एक कसकर खिंचा हुआ होता है जबकि दूसरा वाला पहले के साथ गुँथने का काम करता है। एक कपड़ा बनाने के लिए, दो धागों को एक साथ बांधना पड़ता है, अन्यथा बुनाई का काम नाजुक बना रहता है । इसलिए प्राचीन बौद्ध मान्यता में, एक बुनकर एक समस्या समाधानकर्ता के समान होता है, कोई ऐसा व्यक्ति जो साइलो को पाटने और अधिक संयुक्तता लाने में माहिर होता है।

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Traditional mud houses in Hangrang valley, Kinnaur  | Photo by Chemi Lhamo

Many changes are taking place in Kinnaur and growing access to the market, connectivity is certainly impacting how we build houses these days and RCC-based buildings are becoming more wide-spread. When I decided to build my house in Hango a few years back, I was very conscious of building it in a way that amalgamates traditional wisdom, and vernacular designing techniques with a modern sensibility. The traditional construction methods are easy, economical, ecologically sensitive, provides cultural utility and thermal functionality and I was determined to preserve that essence. Any changes in these designs should aim for aesthetic needs, comfort, and suitability to modern-day needs at the lowest possible ecological cost.

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हिम सिंह और ख़ोरलो का नमूना- सूकदेन पर एक पारम्परिक रचना।

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Gopal ji's mud house | Photo by Deepshikha Sharma 

कालीन पर विस्तृत डिजाइन और रूपांकन तिब्बत के ऊंचे पहाड़ों में जीवन से प्रेरित हैं और अक्सर प्रकृति और पर्यावरण के विषयों का आह्वान करते हैं। पक्षियों, फूलों और पौराणिक जानवरों के रूप काफी सामान्य हैं- सिंहपर्णी, देसी पक्षी, ड्रुक (आकाश ड्रैगन), बाघ, आइबेक्स, तेंदुए, हिम सिंह, और याक को कालीनों पर खूबसूरती से बुना हुआ देखा जा सकता है, जिसमें  धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व जैसे मंडाला, प्रकृति के चार तत्व, बुद्ध का वज्र, स्वस्तिक और कीमती पत्थरों का चित्रण जी और गाउ (ताबीज) समाहित होते हैं। कालीन पर रूपांकन केवल डिजाइन नहीं हैं, बल्कि इसके बड़े प्रतीकात्मक अर्थ हैं उदाहरण के लिए: सुकदेन पर क्रेन की आकृति का चित्रण सौभाग्य का प्रतीक है, याक रूपांकन खानाबदोश जीवन की याद दिलाता है, सिंहपर्णी, पक्षी और बादल किसी की  प्रकति के साथ  निकटता को दर्शाते हैं, वज्र बुद्ध के ज्ञान का प्रतीक है, बाघ की धारियां किसी की प्रतिष्ठा और धन का प्रतीक हैं, जबकि हिम सिंह और आकाश ड्रेगन पारंपरिक लोककथाओं से पौराणिक प्राणी का प्रतिनिधित्व करते हैं और फीनिक्स शुभता का प्रतीक है।

Gopal ji's mud house | Photo by Deepshikha Sharma 

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Gopal ji's mud house | Photo by Deepshikha Sharma 

लाहौल और अन्य उच्च हिमालयी क्षेत्रों में अधिकांश परिवारों के पास घरेलू रूप से उत्पादित सुकदेन हैं और यह  सबसे कार्यात्मक टुकड़ों में से एक है जो कठोर सर्दियों के दौरान वास्तव में काम आता है। प्राकृतिक रेशा और प्राकृतिक वनस्पति रंगों का उपयोग सूकदेन के समग्र सौंदर्यशास्त्र को भी बढ़ाता है और यह एक ऐसे परिधान के व्यावहारिक टुकड़ों में से एक है जिसकी चमक और दमक उपयोग के साथ बढ़ती है। सूकदेन बनाने की प्रक्रिया की सबसे आकर्षक विशेषताओं में से एक यह है कि यह सबसे प्राकृतिक तरीके से संसाधन उपयोग का परिणाम है। पूरा कालीन हाथ-कता है, हाथ से बनाया जाता है, स्वाभाविक रूप से रंगा जाता है और हाथ से बुना जाता है जहां कुछ भी बेकार नहीं जाता है और अंतिम उत्पाद दशकों तक रहता है, कुछ तो पीढ़ियों तक चले जाते हैं। एक महिला अपने माता-पिता से विरासत में मिली सबसे बड़ी संपत्ति हाथ से बुने हुए शॉल के साथ-साथ पारंपरिक हाथ से बुने हुए कालीन, गलीचा और रजाई है । बुनाई केवल एक शिल्प नहीं है, इसमें पर्याप्त सामग्री, और सांस्कृतिक मूल्य हैं और बुने हुए सूकदेन  पर कलाकृति हमारी समझ से परे मूल्यों, विश्वासों और रहस्यवाद का प्रतीक है।

Interior construction  | Photo by Deepshikha Sharma 

लेखकों का परिचय

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रिंचेन अंगमो और छेरिंग गाज्जी

 

रिंचेन अंगमो और छेरिंग गाज्जी लाहौल (हि.प्र.) के गुमरंग गांव के मूल निवासी हैं। कृषि और पशुधन पालन उनका प्राथमिक व्यवसाय है और वे तीस वर्षों से अधिक समय से खेती कर रहे हैं।बड़े कृषि क्षेत्रों के अलावा, वे अपने रसोई के बाग में ताज़ी सब्जियों की विस्तृत किस्में भी उगाते हैं। रिंचेन अंगमो ने बहुत छोटी उम्र से ही खेतों में काम करना शुरू कर दिया था और अब तक इसे जारी रखा है। उन्हें बुनाई पसंद है और वह एक कुशल बुनकर है। छेरिंग गाजी ने बुनाई करना भी सीखा और सर्दियों के दौरान दस्तकारी ऊनी रजाई और कालीन बनाते हैं।

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