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गर्मियों में शायद ही कोई जगह लाहौल जितनी सुंदर होगी। गर्मियों में लाहौल घाटी बिल्कुल जन्नत बन जाती है। खेतों के किनारों पर फूलों के कालीन बिछ जाते हैं, ठंडे-ठंडे पानी के झरने हर जगह बहते हैं और इन्हीं सब के बीच से प्रबल चंद्रभागा बहती हुई। आश्चर्य की बात नहीं कि इतनी सुंदर घाटी पर आक्रमणकारियों की बुरी नजर कभी पड़ी होगी। कहते हैं कि एक बार आक्रमणकारियों ने इस घाटी पर आक्रमण करने का षड्यंत्र रचा। उन्होंने सोचा कि पहले एक गाँव पर कब्जा करेंगे और वहाँ से  बाकी की घाटी को अपने नियंत्रण में करने के लिए आगे बढ़ेंगे। पर किस गाँव पर पहले कब्जा किया जाए, इस सवाल ने उन्हें उलझा दिया था।

​जासूसों का एक छोटा दल निरीक्षण करने निकला। उनका लक्ष्य था कि वो ऐसा एक गाँव ढूंढ लें जिस पर वो पहले हमला कर सकें। बहुत घूमने के बाद उन्होंने गुशाल गाँव चुना। गुशाल में इतने खेत थे कि पूरी फौज साल भर बैठ कर आराम से खा सकती थी। पानी भी खूब सारा था और सर्दियों में धूप भी अच्छी होती थी। जासूसों ने सोचा कि वो गुशाल पर पहाड़ों के पीछे से आकर अचानक हमला बोल देंगे और गाँव वालों को कुछ करने का मौका ही नहीं मिलेगा। योजना ऐसी बनी कि कुछ चुनिंदा सैनिक पैदल जा कर रात खुलने से पहले ही हमला कर देंगे। उनका इशारा देख कर बाकी सेना आगे बढ़कर गाँव पर कब्जा कर लेगी।

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गुशाल गाँव के चारों तरफ अलग-अलग प्रकार के जंगली पौधे और घास के मैदान थे। इनमें बिच्छू बूटी के कई सारे गुच्छे भी थे। बिच्छू बूटी के पत्तों को उबालकर बड़ा स्वादिष्ट थुकपा बनता है। पर बिच्छू बूटी के पत्तों को स्पर्श करते समय दस्ताने पहनना जरूरी है। कहीं गलती से पत्तों का त्वचा से स्पर्श हो जाए तो ऐसी खारिश हो जाती है कि अच्छे-अच्छों को नानी याद आ जाए। ये बात सभी स्थानीय लोगों को तो पता थी, लेकिन आक्रमणकारियों को इस बात की जानकारी कैसे होती? रात के अंधेरे में सैनिकों का एक दल गाँव पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ा। झाड़ियों में चलते-छिपते सैनिक सीधे बिच्छू बूटी के पौधों के बीच में घुस गए।

बस कुछ पल की बात थी... सारे सैनिक खारिश करने लगे। खारिश से राहत तो दूर की बात थी, कुछ देर में सारा दल खुजली करते हुए ज़मीन पर लंबा हो गया। दल के मुखिया ने कहा, "अगर इस गाँव के पौधे इतना काटते हैं, तो सोचो इस गाँव के लोग कितने खतरनाक होंगे।" मुखिया की बात सुनकर सैनिक दल वहां से भागने लगा। देखते ही देखते सभी सैनिक गाँव से गायब हो गए।

सैनिकों ने लौट कर पूरी घटना अपने सेनापति को सुनाई। तब सबने मिलकर यह निर्णय लिया कि उनकी भलाई इसी में है कि लाहौल पर कब्ज़ा करने का ख्वाब भूल कर लौट जाएं।

सुबह जब गुशाल गाँव के लोग उठे तब उन्हें कोई खबर ही नहीं थी कि उस रात क्या हुआ। सब कुछ हर रोज़ की तरह चल रहा था। उन्हें इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उनकी बिच्छू बूटी की सेना ने उस रात एक बड़े ही नापाक योजना लेकर आयी सेना को विफल कर दिया था।

चंद्रभागा नदी, जिसे चिनाब के नाम से भी जाना जाता है, लाहौल की चंद्रा और भागा घाटियों से निकलने वाले पानी के संगम से निकलती है। इसका संगम लाहौल के तांदी में है।

 

गुशाल लाहौल में चंद्रा के तट पर बसा एक खूबसूरत गाँव है।

 

बिच्छू बूटी एक पौधे की किस्म है जो हिमालय सहित दुनिया भर में व्यापक रूप से उगती है। यह कई औषधीय गुणों के लिए जानी जाती है। छूने पर यह त्वचा में खारिश पैदा करती है।

 

थुकपा एक तिब्बती नूडल सूप है, जिसे लद्दाख, लाहौल और स्पीति सहित कई हिमालयी क्षेत्रों में तैयार किया जाता है और इसका आनंद लिया जाता है।

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