अकेला पेड़
बिशन सिंह के सपने आखिर सच हो रहे थे। उसने अपनी पढ़ाई अभी खत्म ही की थी कि उसकी सरकारी टीचर की नौकरी लग गई। उसने यही चाहा था परन्तु एक छोटी सी मुश्किल थी। उसकी पहली पोस्टिंग काज़ा में हुई थी। स्पीति तब पंजाब का हिस्सा होता था और काजा का नाम लोगों ने बस सुना ही था। स्पीति के बारे में लोगों के मन में एक डर सा था। स्पीति था भी इतनी दूर कि शायद ही कोई वहां तक पहुंचा था। स्पीति के बारे में कई मिथक प्रचलित थे। उन दिनों बस मनाली तक ही चलती थी। मनाली से आगे सारा रास्ता पैदल चलना पड़ता था। रोहतांग ला पार करके ग्रामफू और बातल होते हुए आपको कुंजुम टॉप आना पड़ता था। फिर करीब 100 कि.मी. का लम्बा रास्ता तय करके आप लोसर पहुँचते थे। काजा यहां से और 60 कि.मी. आगे था!
बिशन को अपने परिवार को पीछे छोड़ जाने का थोड़ा गम था। पर वो इस नए मौके को लेकर बहुत उत्साहित भी था। उसको पहाड़ों का बहुत शौक था और पहाड़ों में रहने का इससे अच्छा मौका शायद ही मिलता। उसने अपना सारा सामान बांध लिया - कई सारे गरम कपड़े भी साथ ले लिए। एक झोला तो बस खाने से ही भरा हुआ था। इतना लम्बा पैदल रास्ता जो तय करना था।
बिशेन स्कूल शुरू होने से दस दिन पहले निकला ताकि वो काजा, ठीक समय से पहुंच सके। ग्रामफू से आगे का रास्ता बड़ा ही सुहाना था। डोर्नी नाले के पास ताकपा के जंगल बहुत सुंदर लग रहे थे। इतने सारे झरने थे कि उसे कभी दूरी का एहसास ही नहीं हुआ। ये जगह इतनी सुंदर थी कि हर कुछ देर बाद वो चलते-चलते रुक जाता ताकि उन वादियों को जी भर कर देख सके। गर्मी के दिन थे और सारे रास्ते में गद्दी चरवाहों के डेरे लगे हुए थे। गद्दी भाई हमेशा किसी भी मेहमान का बड़े प्यार से स्वागत करते हैं। लोगों से बात करके उनको देश-दुनिया की खबरों का पता चलता है। बिशन की इस पैदल यात्रा की पहली कुछ शामें गद्दियों के साथ बीतीं। हर डेरे में बिशन का स्वागत बकरी के दूध से बनी मीठी चाय से होता। शाम के खाने में गरम-गरम रोटियां, घी और कढ़ी! बिशेन ने ग्रामफू से बातल के सफर में खूब मजे किए। पर यहां से आगे का सफर लंबा था क्योंकि अब गद्दी पीछे छूट गए थे। कुंजुम टॉप पहुंचने में एक और दिन लगा और आखिर में वो स्पीति के पहले गाँव, लोसर, पहुंच गया।
जिस चीज पर बिशन का सबसे पहले ध्यान गया वो यह था कि स्पीति में पेड़ नहीं के बराबर थे। पानी के झरने छोटे होने लगे थे और लोसर पहुंचने तक बिशन को इक्का-दुक्का पेड़ ही नजर आया था। एक पल के लिए तो उसे ऐसा लगा जैसे वो किसी अनजान ग्रह पर पहुंच गया था। वो अविश्वास से धीरे चलने लगा। उसे यह समझ ही नहीं आ रहा था कि इतने विशाल पहाड़ों पर एक भी पेड़ कैसे नहीं था! वो सोच रहा था जाने किसने पहाड़ों से सारे पेड़ और हरियाली चुराई होगी? ऐसी जगह में रहना उसे अब नामुमकिन लग रहा था। पर वो कर भी क्या सकता था, उसका घर यहां से सैकड़ों मील दूर था। अचानक उसे लगा जैसे वो ऐसी जगह फंस गया है जहां से निकलना नामुमकिन है। चलते-चलते वो सुमलिंग गाँव पहुंच गया जो काजा से महज 15 कि.मी. दूर था। सुमलिंग में एक बहुत बड़ा विलो का पेड़ था।

उस अकेले पेड़ को देख कर बिशन से रहा नहीं गया। उस विशाल पेड़ के पास जाकर वो पेड़ से गले लगकर लिपट गया। फिर बिशन फूट-फूट कर रोने लगा और रोते रोते उसने पेड़ से पूछा, "मैं तो अपने परिवार का पेट पालने की मजबूरी में यहां पहुंचा हूँ, पर तेरी ऐसी कौन सी मजबूरी थी जो तुझे यहां आकर बसना पड़ा?"
बिशन का रोना सुनकर सारा गाँव वहां पहुंच गया। दो आत्मीय दोस्तों के बीच चल रही इस बातचीत में खलल डालने की गुस्ताखी किसी ने नहीं की।
काजा स्पीति का मुख्य शहर और स्पीति उपमंडल का मुख्यालय है।
ग्रामफू और बातल मनाली से काजा के रास्ते में पड़ने वाले स्थान हैं।
ताकपा इसे बिर्च के नाम से भी जाना जाता है, यह एक पतली पत्ती वाला कठोर लकड़ी का पेड़ है। इसकी छाल आमतौर पर पतली परत में छीली जाती है, खासकर युवा पेड़ों की। इस पतली परत का उपयोग पारंपरिक रूप से कई उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में कागज के रूप में किया जाता था। कई पवित्र धर्म ग्रंथों को ऐसी छाल की पतली परत पर लिखकर संरक्षित किया गया है।
डोर्नी नाला मनाली से काजा के रास्ते में एक ऐसा स्थान है जहां अभी भी बहुत सारे ताकपा (बर्च) के पेड़ मिल सकते हैं।
सुमलिंग स्पीति नदी के दाहिने किनारे पर एक खूबसूरत गाँव है।
विलो लंबी पतली शाखाओं वाला पेड़ जो अक्सर पानी के पास उगता है। सुमलिंग गाँव में आज भी वो अकेला विलो का पेड़ सड़क के किनारे देखा जा सकता है।