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खिराव गोम्पो दोरजे

गोम्पो दोरजे बहुत साहसी था। उसे शिकार का बड़ा शौक था। नाबो और तंगरोल जैसे जंगली जानवरों का शिकार वो अकेला ही कर लेता था। एक जंगली जानवर के शिकार से वो कई दिनों तक अपना पेट भरता था। उसने बचपन से शेन को दूसरे जंगली जानवरों का शिकार करते देखा था। शेन की तरह ही वो जानवरों को चौंका देता था, फर्क सिर्फ इतना था कि वो शिकार के लिए अपने धनुष और बाण का इस्तेमाल करता था। वो किब्बर गाँव से कुछ दूर अकेला रहता था और पास के सारे पठारी क्षेत्र में पैदल घूमा करता था। किब्बर के लोग उसे खिराव गोम्पो दोरजे के नाम से जानते थे - खिराव यानी शिकारी - क्योंकि वे सब उसके शिकार करने के हुनर के प्रशंसक थे।

खिराव गोम्पो दोरजे अकेले रहना पसंद करता था। पर उसकी एक खास आदत थी। जब भी वो किसी जानवर का शिकार करता तो उसका चार हिस्सों में विभाजन करता। तीन हिस्से अपने लिए रख कर एक हिस्सा वो लामाजी को दे आता। ये लामाजी बंदी-फ़राह के सामने एक गुफा, जो बिलकुल दांग से लग कर थी, में हमेशा ध्यान किया करते थे। कोई छोटे दिल वाला यहां कभी नहीं पहुंच पाता। एक कदम चूके तो सीधे खाई में गिरने का डर था। बहुत कम लोग लामाजी के दर्शन के लिए जाते थे। गोम्पो दोरजे लामा के पास सबसे नियमित रूप से जाता था। वो लामा के लिए लाया हुआ मांस गुफा के प्रवेश द्वार पर रखकर निकल जाता। लामाजी इस उपहार को स्वीकार करते और उसका सेवन करके हड्डियां गुफा के द्वार पर फेंक देते। गोम्पो दोरजे और लामा के बीच ये क्रम कई सालों से चला आ रहा था। पर वक़्त सभी का बदलता है - और कई बार अच्छे वक़्त के बाद बुरा वक़्त भी आता है। एक समय गोम्पो दोरजे को भी मुश्किल दौर का सामना करना पड़ा। हफ्तों तक कोई शिकार हाथ नहीं लगा, एक छोटा खरगोश भी नहीं! गोम्पो दोरजे सोचता रहा कि क्या किया जाए। फिर अचानक उसे एहसास हुआ कि शायद उसे लामाजी के दर्शन करके उनकी राय लेनी चाहिए।

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भूख से बेहाल होने के बावजूद गोम्पो दोरजे ने लामाजी की गुफा तक चलने का साहस किया। गुफा के प्रवेश द्वार पर पहुंचते ही उसकी नजर वहाँ गिरी हड्डियों पर पड़ी। हर तरफ हड्डियों का ढेर! ऐसा लग रहा था जैसे वहाँ किसी ने हड्डियों का कालीन बिछा दिया था। तभी उसे ध्यान आया कि अगर लामाजी ने इतना मांस खाया है, तब उसने खुद इससे बहुत अधिक मांस खाया होगा। गोम्पो दोरजे का दिल भर आया। बिना कुछ सोचे उसने वहीं से छलांग लगा दी। पहाड़ी समुदाय मानते हैं कि जब कोई दिल से अपनी गलतियों के लिए शर्मिंदा होता है तब उसे माफी मिल जाती है और वह मोक्ष के रास्ते पर निकल जाता है। गोम्पो दोरजे खाई में गिरते-गिरते हवा में तैरने लगा और आसमान की ओर जाने लगा।

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लामाजी अपने आसन से ये सब देख रहे थे। उनके मन में एक विचार आया, अगर गोम्पो दोरजे जैसे तुच्छ शिकारी को मोक्ष का रास्ता मिल सकता है तो उनके जैसे परम पूज्य लामा को भी तो मोक्ष प्राप्ति होनी चाहिए। ऐसा सोच कर वो अपने आसन से उठे और खाई में छलांग लगा दी। पर उनके अपने अहंकार का वजन इतना ज्यादा था कि वो सीधे खाई में गिर गए और उसके बाद फिर कभी किसी को नजर नहीं आए।

नाबो एक हिमालयी जंगली भेड़ होता है जिसके सींग पीछे की ओर मुड़ते हैं। इसे किन्नौर, स्पीति, लाहौल और लद्दाख में देखा जा सकता है।

तंगरोल लंबे, मोटे सींगों और दाढ़ी वाला एक जंगली पहाड़ी बकरा होता है, जो पिन वैली सहित लाहौल और स्पीति के कुछ हिस्सों में पाया जाता है।

शेन स्पीति में हिम तेंदुए को शेन भी कहा जाता है।

किब्बर स्पीति घाटी का एक गाँव है जो पहले व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र होता था।

लामा बौद्ध भिक्षु को कहते हैं।

बंदी-फ़राह किब्बर के पास एक खूबसूरत खाई है। खिराव गोम्पो दोरजे की गुफा आज भी इस जगह से दिखाई देती है।

दांग चट्टान के लिए स्पिटियन शब्द है।

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