In Conclusion:
हिमालय के पौधे इस क्षेत्र की तरह ही अनोखे हैं। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु से जुड़े परिवर्तन से पौधे कैसे प्रभावित होते हैं? यह सवाल डॉक्टर मयंक कोहली से पूछा गया, जो वनस्पति - प्रणाली का अध्ययन करते हैं। उन्होंने बताया कि पौधों की वृद्धि जलवायु के पैटर्न से बहुत गहराई से जुड़ी हुई है।
तापमान, वर्षा और बर्फबारी के पैटर्न में बदलाव, संयुक्त रूप से पौधों की बढ़त को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, बढ़ते तापमान से मिट्टी सूख जाती है जिससे पौधों की वृद्धि कम हो जाती है, कुछ पौधे कम तो कुछ अधिक प्रभावित होते हैं। अमूमन गर्म मौसम में पौधों के आवरण और उत्पाद में गिरावट की आशंका होती है। हालांकि इस वर्ष की तरह पिछले कुछ वर्षों में गर्मियों में ज़्यादा बारिश की घटना हुई है जिससे पौधों की वृद्धि बढ़ सकती है और परिदृश्य पहले से कहीं अधिक हरा भरा हो सकता है।
इसके साथ ही सर्दियों में बर्फबारी और गर्मियों में बारिश का समय और मात्रा भी यह निर्धारण करने में बहुत महत्वपूर्ण है कि पौधों को इस से कितना लाभ होगा। इस जटिल प्रतिक्रिया को अभी भी पूरी तरह समझा नहीं गया है. यही कारण है कि हम ने विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में पौधों पर जलवायु के प्रभाव को समझने के लिए पश्चिमी हिमालय में बड़े प्रयोगों के अंतर्गत खांचे बनाये हैं। ऐसे प्रयोग स्पीति और लद्दाख में भी किए जा रहे हैं।हमने ऊंचाई वाले क्षेत्रों में वृक्षारोपण अभियान में वृद्धि के बारे में भी उनसे पूछा और यह भी कि इस बारे में वह क्या महसूस करते हैं। उनका कहना है कि यह बात हम सबको पूछना चाहिए कि ऐसे वृक्षारोपण अभियान क्यों चलाए जाते हैं और क्या यह अभियान कल्पना अनुरूप परिणामों को पूरा करते हैं? यह समझे बिना कि यह पेड़ किसी परिदृश्य में जीवित रह सकता है कि नहीं, क्या वृक्षारोपण का कोई अर्थ भी है? अक्सर स्थानीय इकोलॉजिकल संदर्भ के बारे में ज्यादा विचार किये बिना कुछ राष्ट्रीय लक्ष्यों को पूरा करने की कवायद के रूप में वृक्षारोपण किया जाता है। उदाहरण के लिए, ऐसे कोई विवरण या तथ्य उपलब्ध नहीं है कि उच्च ऊंचाई वाले घास के मैदानों में पेड़ लगाने से कोई महत्वपूर्ण कार्बन लाभ हो सकता है।
इसके विपरीत वास्तव में शोध से पता चला है कि प्राकृतिक घास के मैदानों में मजबूत कार्बन लाभ की संभावना है क्योंकि उनका कार्बन भंडार बड़े पैमाने पर जमीन के नीचे होता है और इसलिए अधिक स्थायी है. फिर भी कार्बन के नाम पर वृक्षारोपण अभियान चलाए जाते हैं। जब ऐसे क्षेत्रों में पेड़ लगाए जाते हैं जहां वे प्राकृतिक रूप से स्वयं जीवित नहीं रह सकते, जैसे सर्द और शुष्क उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्र, उनको पानी देने की और जानवरों से उनके बचाव की जरूरत होती है। इसके लिए बहुत मानवीय और आर्थिक खर्च की जरूरत होती है। यह भी तब जब कि यह सब किसी अनिश्चित और अधिकांशतः महत्वहीन परिणाम के लिए किया जाता है।
हम इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ इस संस्करण को इस आशा के साथ समाप्त करते हैं कि हम सभी हिमालय की विविध वनस्पतियों के आनंद और संरक्षण की निरंतरता बनाये रखेंगे। अब आप हमसे हमारे यूट्यूब चैनल पर भी मिल सकते हैं।
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