खेती से परे - लाहौल में खेत-आधारित व्यवसाय
हिमालय क्षेत्र में खेती में बहुत बदलाव आए है। एक प्रमुख बदलाव है - जीवन के गुज़र-बसर के लिए की जा रही खेती से निकलकर व्यावसायिक खेती करना। किसान अब अधिक आय देने वाली नकदी फसलें लगा रहे हैं व विविध प्रकार की फसलें उगा रहे हैं। बढ़ती कनेक्टिविटी के कारण किसान अब बहुत कुछ जान और सीख भी रहे हैं। उत्पाद किस प्रकार करना, सप्लाई चेन को किस प्रकार सुनियोजित करना, और उत्पाद की बिक्री किस प्रकार करना, यह सब अब यह ध्यान में रखकर किया जा रहा है कि किसानी से ज़्यादा लाभ कमा सकें। हिमालय की ऊँची पहाड़ियों में बसने वाले आधुनिक किसान अब प्रयोग करने के लिये तैयार है व ऐसी फसलें, फल, पौधे उगाना चाहते है जो अधिक आय दे जैसे - सेब, नकदी फसलें, फूल, विदेशी (एकज़ोटिक) सब्ज़ियाँ आदि। अब खेती करना केवल जीवन संचय का माध्यम ना बनकर एक मुनाफा देने वाला रोज़गार का ज़रिया भी बन गया है जो इससे जुड़े और लोगों के लिये भी लाभदायक सिद्ध हो सकता है। बदलते समय के साथ बदलते इन सफल किसानों की कहानियाँ उन रुढ़ीवादी बातों को झुठलाती हैं जो यह कहती हैं कि किसानी कर लाभ नहीं कमाया जा सकता।
फोटो साभार: तशी आंगरुप
लाहौल, हिमाचल प्रदेश के टिनो टिन्नो के निवासी तशी आंगरुप भी एक ऐसे ही किसान हैं जो कई चीज़ों में माहिर हैं। वे एक किसान हैं, व्यवसायी हैं, जिन्होंने पारम्परिक फसलों की खेती की है, उनपर प्रयोग कीये हैं, और अब तोढ घाटी में विदेशी सब्ज़ियों के उत्पादन को भी आगे बढा रहे हैं। अब वे अपने गाँव में कृषि पर्यटन को लाने का भी प्रयास कर रहे हैं।
तशी की यात्रा 2007 में शुरु हुई जब उन्हें लाहौल में विश्व बैंक के एक प्रोजेक्ट में काम करने का अवसर मिला जिसमें सीबकथॉर्न नर्सरी का प्रचार करने का काम था। बागवानी विभाग के मरुस्थलीय विकास कार्यक्रम के साथ जुड़ने के बाद उन्होंने चिनार के पेड़ की नर्सरी व सीबकथॉर्न नर्सरी के बारे में और भी बहुत कुछ जाना। जैन सींचाई कार्यक्रम के साथ वे पूरे हिमाचल प्रदेश में घूमे और 11 जिलो में किसानी किस प्रकार की जा रही है, इस बात का अध्ययन किया। स्थानीय लोगो को उन्होंने यह भी सीखाया कि नर्सरी किस प्रकार बनाई जाती है। 2014 से वे पूरी तरह खेती-बाड़ी से जुड़ गये। तशी ने अपने ही गाँव में पट्टे पर भूमि लेकर जैविक खेती करना प्रारंभ किया। उन्होंने विदेशी सब्ज़ियाँ उगाने का भी निर्णय लिया जो उस समय लाहौल के लिये एक नई बात थी। वे 1000 आलू के बीज (1000 कट्टा) ले आए और उसे उगाना शुरु किया। इसके बाद पत्तागोभी और हरे मटर भी उगाना शुरु किया।
समय के साथ-साथ तशी ने और कई प्रयोग करते हुए विभिन्न नई प्रकार की विदेशी सब्ज़ियाँ ऊगाई एवं सींचाई और अन्य तकनीकों में बदलाव कीए। वे अब 19 प्रकार की विदेशी सब्ज़ियाँ उगाते हैं (ज़्यादातर योरोपियन) जैसे कि ब्रोकोली, आइसबर्ग लेटस, लाल, पीले व हरे लेटस, स्क्वाश (जुगनी), पीले व हरी ज़ुकीनी, सेलेरी, पार्सली, लीक, स्नो पी (मटर), फेनल, योरोपियन गाजर, लाल पत्तागोभी, अनेक प्रकार की जड़ी बूटी, जड़ सब्ज़ियाँ आदि। यही नहीं तशी ने तोढ घाटी के आसपास के गाँवों में भी जैसे टिन्नो, गैमुर जिस्पा, चीका व सुम्डो में किसानों को इसी प्रकार की सब्ज़ियाँ उगाने की प्रेरणा दी है। किसान अब गैर-मौसमी दिनों में विदेशी सब्ज़ियाँ उगाकर बड़े शहरों में ऊँचें दामो में बेच सकते हैं। ताशी अपने समुदाय में काफी लोकप्रिय हो गये हैं। उन्होंनें एक नारा सभी को सीखाया - "तेल भरो, खेती करो" जिससे लाहौल के युवा किसान बेहतर तकनीक जैसे पावर टिलर, जेसीबी आदि का उपयोग कर खेती करें। बहुत बार तो उन्होंने अपना पावर टिलर और जेसीबी भी दूसरों को पथरीली भूमि साफ करने के लिये उधार दिया।
तोढ घाटी, लाहौल के किसान अब पारंपरिक फसल के साथ-साथ बेमौसम मिलने वाली सब्ज़ियाँ भी उगा रहे हैं। अब वे नई तकनीक व मशीनों का भी उपयोग कर रहे हैं जैसे - टिलर, ट्रैक्टर, पावर बिडर, ग्रास कटर, स्प्रे मशीन, स्प्रिन्कलर आदि
फोटो साभार: तशी आंगरुप
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जिससे की पैदावार बढ़ सकें।पास ही के स्पीती घाटी की तुलना में लाहौल में बरसात अधिक होती है जो आलू, हरे मटर, हॉप्स, पत्तागोभी व विदेशी सब्ज़ियाँ उगाने के लिये अनुकूल मौसम है। लाहौल के आलू पूरे देश में प्रसिद्ध है और इस इलाके की समृद्धि का एक कारण भी है। कम्पोस्ट बनाना विदेशी सब्ज़ियाँ उगाने के लिये बहुत ज़रुरी है एवं यहाँ के लोग वेर्मिकम्पोस्ट (केंचुआ खाद) करना पंसंद करते है। लाहौल के लगभग सभी घरों में वेर्मिकम्पोस्ट के लिये एक अलग ढांचा निर्धारित है। तशी स्वयं एक साल में करीबन 1200-1500 टन कम्पोस्ट अपने खेत के लिये तैयार करते है। वे कहते हैं , "हम जंगल से सूखी पत्तियाँ, हरी पत्तियाँ, जंगली पत्तियाँ, जुनिपर आदि लाते है, और उसके साथ ऑर्गेनिक खाद, मानव अपशिष्ट, व केंचुएँ डालते हैं। प्रत्येक घर में करीब 3-4 बार कम्पोस्ट इक्ट्ठा हो जाता है और हम उसका खेतों में इस्तेमाल करते हैं।"
समय के साथ स्थानीय निवासी सींचाई के आधुनिक साधन व अन्य तकनीके भी सीख गए हैं जो ज़्यादा आसान है और कार्य-कुशलता बढ़ाते है। पहले सींचाई के लिये पानी हर परिवार को बारी-बारी से दीया जाता था। इस कारणवश एक किसान को अपनी बारी के लिए 6 दिन तक इंतज़ार करना पड़ता था।अब बेहतर सींचाई की व्यवस्था के कारण यह परम्परा लगभग खत्म हो गई है। ग्लेशियर से सीधा पाइप लगाकर, सभी घरों के कच्चा कुल (खेतों की नहरें) में पहुँचाया गया है जिससे अब पानी सभी को एकसाथ मिल रहा है। तशी हर्ष से कहते है - "अब सब सींचाई 3-4 घंटों में खत्म कर सकते है जो पहले कोई सोच भी नहीं सकता था। अब तो करीबन 90 प्रतिशत ला्हौली गांव पाइप व ड्रिप सींचाई तकनीक का उपयोग कर रहे हैं स्प्रिंकलर एवं रेन-गन तकनीक का भी उपयोग हो रहा है।
बेहतर रास्तों के माध्यम से, बेहतर परिवहन के साधनों के कारण, और नई तरह की फसलें जैसे हाइब्रिड बीज व ऑर्गेनिक खाद की मदद से लाहौल के किसान ज़्यादा पैदावार कर पा रहे हैं और ज़्यादा कमा भी पा रहे हैं। सब्ज़ियों की बिक्री से किसान पारम्परिक फसलों की तुलना में 5 गुना ज़्यादा कमा रहे है। बड़े शहरों में विदेशी सब्ज़ियों की माँग ज़्यादा है और लाहौल के किसान अब दिल्ली, चंडीगढ़, सूरत, अहम्दाबाद आदि शहरों में अपनी उपज बेच पा रहे है।
तोढ, तुरत और कीलौंग के किसानों ने मिलकर 101 किसानों का संगठन बनाया है जिससे कि उन्हें स्थानीय सभी परिवारों के लिये बेहतर आय एवं भविष्य सुधारने का मौका मिल सके। यह संगठन किसान मेले आयोजित करता है, किसानों के लिये ओवर-द-काउंटर संविदा की सुविधा उपलब्ध कराता है, और अनोखे प्रयोग भी करता है जैसे कि "एक गाँव-एक फसल" योजना जिससे एक गाँव के किसान अपने वातावरण के अनुरूप एक ही प्रकार की फसल उगाए और खेती-बाड़ी एक संगठित व्यवसाय की तरह करें। यह संगठन बड़ी होटलों जैसे की ताज होटेल के साथ भी काम करेगा जिससे उन्हें सालभर ताज़ी सब्ज़ियाँ पहुचाँई जा सकें।
अटल टनल के निर्माण से भी किसानों को यहाँ बहुत लाभ मिला है। अब यहाँ बहुत से पर्यटक आने लगे हैं जिसे देखते हुए अब किसान खेती व पर्यटन को जोड़ना चाहते हैं। वे कैम्प एवं होम्स्टे खोल रहे हैं जहाँ पर पर्यटकों को बीजों की बुआई, सींचाई, सब्ज़ियाँ कहाँ से खरीदना, ग्रामीण जीवन आदि की अनुभूति करवाई जाती है। तशी का फार्मस्टे भी काफी लोकप्रिय है जो उन्होंने टिन्नो और कीलौंग में खोला है। वे मानते है कि ऐसा करने से बाहर के आए लोग भी यहाँ की जीवनशैली अच्छेसे समझने लगते हैं।
तशी जैसे किसान परम्परा के साथ-साथ अधुनिक उपाय भी अपना रहे हैं और यही कारण है कि वे किसानी करते हुए अधिक लाभ कमा पा रहे हैं। हिमालय की गोद में बसने वाले छोटे किसान आपस में इसी तरह से एक-दूसरे की मदद करते हुए अपनी ज़िन्दगी संवार सकते हैं।
फोटो साभार: तशी आंगरुप
फोटो साभार: तशी आंगरुप
लेखक के बारे में
तशी आंगरुप
तशी आंगरुप लाहौल, हिमाचल प्रदेश के टिन्नो ग्राम के निवासी है व एक कृषि उद्यमी हैं। वे अपने खेतों में ऑर्गेनिक विदेशी सब्ज़ियाँ उगाते हैं। वे युवा किसानों को किसानी के बेहतर तरीके भी सीखाते हैं। वे नर्सरी चलाना, अनेक प्रकार की फसलें उगाना, एवं उसे बड़े शहरों में किस प्रकार बेचना, इन बातों की बहुत अच्छी समझ रखते हैं।
फोटो साभार: तशी आंगरुप